FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी

FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी > हाय रे शर्माइन का सोफा, शर्माइन बिटिया क ब्याह कराइन सोफे पे नवा कपड़ा चढ़ाइन, जवन रहा शर्माइन का सोफा ऊ बन गवा मिश्राइन का सोफा, हाय रे मिश्राइन का सोफा। कुछ तरह का विज्ञापन जो आजकल Television पर जोरों से चल रहा है, ये फेविकोल का मजबूत जोड़ है, टूटेगा नहीं, ये विज्ञापन भी एक जमाने में खूब प्रचलित था और भला क्यों ना हो आखिर जब सोफा या फर्नीचर FEVICOL से बना हो तो वर्षों तक तो चलेगा ही।

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FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी
FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी

FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी

दोस्तों, इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपके सामने लाये हैं उस शख्स के जीवन की कहानी जिन्होंने एक लकड़ी की दुकान पर चपरासी की नौकरी से लेकर हिंदुस्तान के सबसे बड़े चिपकाउ पदार्थ Fevicol कंपनी के Ownership तक का सफर तय किया है। हालाँकि 2013 में वे इस दुनियाँ को अलविदा कर चुके हैं लेकिन जो लोग अपने पीछे एक बड़ी लकीर छोड़ के जाते हैं वे मरते नहीं बल्कि अमर हो जाते हैं। उन्हीं अमर लोगों में से एक नाम है बलवंत पारेख जी की जिन्होंने FEVICOL (Pidilite Industries) की नींव रखी थी, तो आइये अब शुरू करते हैं।

प्रारंभिक जीवन

बलवंत पारेख का जन्म 1925 में गुजरात के महुआ नामक कस्बे में हुआ था जो भावनगर में पड़ता है उनकी शुरुआती पढ़ाई भी वहीं से ही हुई थी बाद में वे आगे की पढ़ाई मुंबई चले गए और गवर्मेन्ट लॉ कालेज से उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की। उन्होंने लॉ की डिग्री तो ले ली मगर वकालत करने का उनका मुड नहीं था क्योंकि उन्हें झूठ बोलना पसंद नहीं था और वकालत के पेशे में झूठ बोलना ही पड़ता है। पढ़ाई के दौरान ही उनकी शादी भी हो गयी थी और उनकी पत्नी का नाम कांता बेन था

अब डिग्री तो उन्होंने ले ली मगर मन वकालत में लगा नहीं और जीवन जीने के लिए पैसों की भी जरुरत थी इसलिए उन्हें नौकरी करनी पड़ी। मुंबई के एक प्रिंटिंग प्रेस में उन्हें नौकरी मिली जिसमे वे हेल्पर का काम करने लगे कुछ दिन वहाँ पर काम करने के बाद उन्होंने दूसरी जगह एक लकड़ी के व्यापारी के यहाँ नौकरी पकड़ी जहाँ पर उन्हें बतौर चपरासी काम करना पड़ा। पैसों की तंगी की वजह से वे अपनी पत्नी को उसी लकड़ी के व्यापारी के गोदाम में साथ लेकर रहते थे।

व्यावसायिक जीवन

बलवंत पारेख मेहनती और ईमानदार व्यक्ति थे और उनके अंदर टैलेंट भी था। कहते है ना कि हीरे की सही कीमत जौहरी ही लगाता है और उनको भी एक जौहरी मिल ही गया। मोहन नाम के एक आदमी से उनकी मुलाकात होती है जो उनके साथ पार्टनरशिप में काम करने को तैयार हो जाते हैं। जिसमे मोहन बाबू पैसा लगाते हैं और शुरू होती है एक व्यापारिक साझेदारी जिसके अंतर्गत वेस्टर्न कंपनी से साइकिल और सुपारी का आयात किया किया जाता है और यह बिज़नेस चल पड़ता है।

भारत को आज़ाद हुए अभी कुछ ही साल हुए थे और अभी भी हमारे देश की निर्भरता विदेशी सामानों पर ज्यादा थीं लकड़ी के काम को करते समय ही उनके दिमाग में एक विचार आया था कि कारीगरों को लकड़ी को जोड़ने में भरी मसक्कत करनी पड़ती है क्योंकि उस समय जानवरों की चर्बी से बनाये जाने वाले सरस को गोंद की तरह से इस्तेमाल किया जाता था जिसके इस्तेमाल से पहले उसे काफी देर तक उबालना पड़ता था और उसमे से बहुत जोर की बदबू भी आती थी। .

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FEVICOL Success Story In Hindi | बलवंत पारेख की जीवनी

फेविकोल बना समस्या का समाधान

बलवंत पारेख ने अपना दिमाग लगाना शुरू किया और सिंथेटिक रसायन के प्रयोग से गोंद बनाने का रास्ता निकाल ही लिया और 1959 में Pidilite ब्रांड के नाम से उन्होंने सफ़ेद और खुशबूदार गोंद को FEVICOL नाम से लॉन्च कर दिया।

अब सवाल यह उठता है कि उन्होंने उस गोंद का नाम FEVICOL ही क्यों रखा ? जब उन्होंने वह सफ़ेद और खुशबूदार गोंद बनाया तो उसका एक नाम भी तो रखना था। उस समय जर्मनी में एक नाम मोविकोल बड़ा प्रचलित था जो उन्हें पसंद आया और उससे प्रभावित होकर बलवंत पारेख ने अपनी गोंद का नाम FEVICOL रखा जो जर्मनी के ही एक शब्द कोल से लिया गया है जिसका मतलब होता है दो चीजों को जोड़ने वाला पदार्थ और वह नाम उनकी कंपनी को राश भी खूब आया।

दोस्तों, जिसने भी लोगों की समस्या का समाधान निकाल लिया उसकी समस्या का समाधान लोग खुद ही बन जाते हैं। बलवंत पारेख का वह खोज वूड इंडस्ट्रीज को भाया और उन लोगों ने फेविकोल को सर आँखों पर बिठाया और FEVICOL पूरे हिंदुस्तान पर छाया। आज फेविकोल का नाम देश का बच्चा-बच्चा जनता है। हालांकि आज बलवंत पारेख हमारे बीच नहीं हैं क्योंकि 2013 में ही उनका निधन हो गया था लेकिन जब चर्चा फेविकोल की होगी तो उसके संस्थापक का नाम तो लिया ही जायेगा। फ़िलहाल इस समय Pidilite Industries की कमान मधुकर पारेख के हाथों में है जो इस कंपनी के CEO हैं।

फेविकोल के अन्य उत्पाद

FEVICOL ने सबसे पहले लकड़ी को चिपकाने का सफेद और खुशबूदार गोंद बनाया था और बाद में अपने इस चिपकाऊ मुहीम को और आगे बढ़ाने के लिए और भी प्रोडक्ट बाजार में ले आये ताकि लकड़ी के साथ-साथ प्लास्टिक तथा कागज़ समेत अन्य चीजों को चिपकाने के माध्यम से देश के हर घर तक अपनी पहुँच बनाई जाए और वे इसमें कामयाब भी हुए। फेविकोल के अन्य उत्पादों की लिस्ट निम्नलिखित है।

  • Fevicol MR
  • FeviKwik
  • Fevistik
  • Fevicryl
  • M Seal
  • Dr. fixit

शानदार विज्ञापन बना प्रसिद्धि का कारण

  • दम लगाकर हईसा, जोर लगाकर हईसा, जीतेंगे हम हईसा, खींचों सारे हईसा, तोड़ भी दो, हईसा। ये फेविकोल का मजबूत जोड़ है, टूटेगा नहीं।
  • शर्मा की दुल्हन जो ब्याह के आई साथ में टू सीटर सोफा भी लाई, पड़ गयो नाम शर्माइन का सोफा, हाय रे शर्माइन का सोफा।
  • फेविकोल ऐसा जोड़ लगाये, अच्छा सा अच्छा भी ना तोड़ पाये।
  • कुर्शी में Fevicol जरूर लगाइयो।
  • पकड़े रहना छोड़ना नहीं।
  • चुटकी में चिपकाए > Fevi Kwik
  • Fevi Kwik > तोड़े नहीं जोड़े।

दोस्तों, सीधी सी बात है कि अगर प्रोडक्ट में दम है और वह लोगों तक अपनी पकड़ बना लेता है और लोग उसे बार-बार खरीदने लगते हैं तो फिर प्रॉब्लम क्या है यही तो है फेविकोल का काम कि जिसे भी पकड़ता है छोड़ने का नाम ही नहीं लेता। आखिर फेविकोल का मजबूत जोड़ है छूटेगा कैसे ? वाकई में इनके विज्ञापन लोगों की जुबाँ से ऐसे चिपके कि छोड़ते ही नहीं।

फेविकोल अंदर क्यों नहीं चिपकता

FEVICOL एक ऐसा चिपकू पदार्थ है जो लकड़ी से लेकर प्लास्टिक, फोम आदि लगभग सभी चीजों को जोड़ने का काम करता है। यहाँ पर एक सवाल हमारे जहन में उठता है कि जो पदार्थ सभी चीजों को जोड़ने का काम करता है वह अपने-आप में अर्थात उस पैकेट, ट्यूब, डिब्बे, गैलन या फिर ड्रम से जैसे ही हम उसे बाहर निकलते हैं वो जिस भी चीज पर लगता है उसे चिपका देता है लेकिन वो जिस पैक में रहता है उससे क्यों नहीं चिपकता ? सवाल अच्छा है और जब सवाल पनपा है तो इसका जबाब भी जरूर देंगे।

FEVICOL विभिन्न पॉलीमर खाशकर PVA नामक एक यौगिक का पानी में मिश्रण है। जब यह मिश्रण हवा के संपर्क में आता है तो पानी उड़ जाता है। और केवल सूखा हुआ पॉलीमर ही रह जाता है। और जब इसे किसी सतह पर रखा जाता है तो इसका पानी उड़ जाने के कारण यह सतह पर चिपकने लगता है। पानी के उड़ जाने पर मजबूती से चिपक जाता है। सीधी सी बात है कि जब तक चिपकू पदार्थ पैकेट के अंदर रहता उसे हवा नहीं लगती है और पानी नहीं उड़ पाता इसलिए चिपकने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाती है और जैसे ही पदार्थ बहार निकलता है पानी उड़ जाता है और वह चिपकना शुरू कर देता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

बलवंत पारेख जैसे इंसान जो अपनी बड़ी सोच और दूरदृष्टि से छोटी सी नौकरी से शुरुआत करके एक दिन सफलता के शिखर को छू लेते हैं ऐसे लोगों से हमें कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ सीखने को मिलता है जिसे Follow करके आप भी अपने आप को सामान्य से बेहतरी की दिशा में ले जा सकते हैं और एक दिन अपने आप को शिखर पर पा सकते हैं।

आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा और कहीं ना कहीं आपके लिए प्रेरणा का स्रोत भी रहा होगा। तो सोच क्या रहे हैं, इसे अभी और इसी समय अपने अन्य दोस्तों के साथ Share करें, Like करें, Comment करें, हमने तो अपना काम कर दिया है, अब आपको अपना काम करना है, हमारा काम था आपको Motivate करना और आपका काम है इस पर अमल करते हुए अपने जीवन को संवारने की कोशिश करना।

दोस्तों, आप अपने जीवन को संवारने की दिशा में आगे बढ़ें, मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं और हम तो चले अपने अगले आर्टिकल लिखने की तैयारी करने, इसलिए आज के लिए सिर्फ इतना ही अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, तब तक के लिए…..जय हिन्द – जय भारत।

धन्यवाद | शुक्रिया | मेहरबानी

आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com

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