कर्म बड़ा या भाग्य

दोस्तों, अधिकतर हम लोगों को बहस करते सुनते रहते हैं कि आखिर “कर्म बड़ा या भाग्य” सबके अपने – अपने तर्क होते हैं कोई कहता हैं कि कर्म बड़ा है और कोई कहता है कि भाग्य बड़ा है, वैसे अगर देखा जाए तो दोनों ही पक्ष अपनी – अपनी जगह सही होते हैं।

लेकिन कितना सही और कितना गलत इसी बात का स्पस्टीकरण करने के लिए आज का यह आर्टिकल लिखा जा रहा है, इस आर्टिकल के द्वारा मै आप लोगों के मन में पनप रहे दुविधा को पूरी तरह से दूर करने की कोशिश करूँगा।

तो आइए अब हम आगे बढ़ते हैं और आज के टॉपिक पर चर्चा करते हैं और यह जानने की कोशिश करते हैं कि वाकई में कौन बड़ा है कर्म बड़ा या भाग्य”…………………………………………………..?

आप लोगो ने अपने जीवन में ऐसे बहुत सारे लोगो को देखा होगा जिनमे कुछ ऐसे लोग होंगे जो बिना कुछ किये ही जीवन का सारा सुख पा जाते हैं और दूसरी तरफ ऐसे लोग भी होंगे जो जीवन भर कड़ी परिश्रम करके भी अभावग्रस्त जीवन जी रहे होते हैं।

कर्म बड़ा या भाग्य

कर्म बड़ा या भाग्य

तो आइये अब आगे बढ़ते हैं और आज के टॉपिक पर गहराई से चर्चा करते हैं…………………………..

यहाँ पर हम एक कहानी के माध्यम से जानेंगे कि आखिर कर्म बड़ा है या फिर भाग्य………………?

एक शहर में मोहन और सोहन नामक दो दोस्त हुआ करते थे, मोहन एक उद्योग पति का बेटा था उसके पिता की एक फैक्ट्री थी जिससे उनकी खूब कमाई होती थी। मोहन को इस बात का बड़ा घमंड भी था और वह अपने दोस्तों में हमेशा अपनी अमीरी का राग गाता रहता था।

जबकि सोहन के पिता ठेले पर घूम – घूम कर चूरन बेचा करते थे, किसी तरह परिवार का गुजारा हो पाता था इस बात से सोहन बड़ा परेशान सा रहता था। उसके दोस्त भी उसका बहुत मज़ाक उड़ाया करते थे।

मोहन और सोहन के औकात में बड़ा फर्क था लेकिन दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे इसलिए दोनों में दोस्ती हो गयी थी। उनकी दोस्ती में अमीरी और गरीबी का कोई भेदभाव नहीं था। लेकिन फर्क तो फर्क ही होता है।

मोहन अमीर होने के कारण कान्वेंट स्कूल में पढ़ता जबकि सोहन के पिता के पास इतने पैसे नहीं थे की वह सोहन को कान्वेंट स्कूल में पढ़ा पाते इसलिए सोहन सरकारी स्कूल में पढ़ता था।

स्कूल से आने के बाद सभी मोहल्ले के लड़के पास के ही मैदान में क्रिकेट खेलने जाते थे और खेल – खेल में ही कभी – कभी सोहन का मज़ाक भी उड़ जाता था कि सोहन भी बड़ा होकर अपने बाप की तरह चूरन बेचेगा। इस मज़ाक में मोहन की भूमिका कुछ ज्यादा ही रहती थी क्योंकि वह अमीर था और अमीर द्वारा गरीब का मज़ाक उड़ाया जानाआम बात है।

साहेब, गरीबी बड़ी ही बुरी चीज़ होती है इसके कारण इंसान को जिल्लत तो बर्दास्त करना ही पड़ता है, चाहे दोस्त हो या समाज या फिर रिस्तेदार इसका एहसास लोग वक्त पड़ने पर दिला ही देते हैं, और अगर मोहन सोहन को मज़ाक – मज़ाक में उसको उसकी गरीबी का एहसास दिला देता है तो ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है।

मोहन को अपनी अमीरी पर बहुत ही घमंड था और वह हमेशा कहता रहता था कि मुझे किस बात की कमी है मेरा बाप बहुत सारा पैसा कमाता है मै अगर कुछ भी ना करूँ तब भी मेरा जीवन सुख और चैन से कट जाएगा पर सोहन तू क्या करेगा तुझे तो चूरन ही बेचना पड़ेगा। और इसी घमंड ने मोहन को आलसी और निकम्मा बना दिया।

कर्म बड़ा या भाग्य

जबकि सोहन के दिमाग में हमेशा एक ही बात चलता रहता था कि मेरा क्या होगा मेरे बाप के पास इतने पैसे नहीं हैं कि मै कोई अच्छी पढ़ाई कर सकूँ या कोई अच्छा व्यापार कर सकूँ।

साहेब, समय बड़ा बलवान होता है, वक्त बीतता गया मोहन और सोहन दोनों बड़े हो जाते हैं मोहन की अमीरी ने उसे अय्याश बना दिया और सोहन की गरीबी ने उसे कर्मठ बना दिया। मोहन अभी भी कुछ नहीं करता था बाप के पैसे पर अय्याशी करता था और जिंदगी के लुफ्त उठा रहा था।

इधर सोहन अब अपने कैरियर के प्रति सीरियस हो गया था बी कॉम तक की पढ़ाई उसने किसी तरह कर ली थी, इससे आगे पढ़ने के लिए उसके साथ बहुत सारी समस्यायें थी क्योंकि उसके पिता अब बूढ़े हो चुके थे इसलिए सोहन का कमाना अब उसकी मजबूरी बन चुकी थी।

उसने कई छोटी – मोटी नौकरियाँ की पर उसे कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि सुबह से शाम तक ऐसी – तैसी कराने पर भी महीने में उसे जो तनख्वाह मिलता था वह परिवार चलाने के लिए पर्याप्त नहीं था।

एक दिन बैठे – बैठे उसके मन में एक विचार आया कि मेरे पिता जी का जो चूरन का व्यापार है अगर इसी में थोड़ा दिमाग लगाया जाय तो शायद कुछ बात बन जाय और घर पहुँच कर उसने अपने पिता जी से कहा कि आज से हम अपने व्यापार में कुछ परिवर्तन करेंगे।

सोहन के दिमाग में एक आईडिया आया था, जो उसने अपने पिता जी को बताया कि पिता जी आप बहुत अच्छा चूरन बनाते हैं, और लोगों को आपका चूरन पसंद भी आता है। लेकिन आप सिर्फ थोड़ा सा चूरन बनाकर ठेले पर बेचते हैं सिर्फ दो चार गलियों में, अगर मै भी आपके साथ लग जाऊं और हमारा पूरा परिवार इसी काम में लग जाय और हम सब मिलकर ज्यादा से ज्यादा और अलग – अलग ढंग के चूरन बनाकर और ज्यादा लोगों तक बेचें तो हमारी आमदनी और भी अधिक हो सकती है ।

यह आईडिया उसके पूरे परिवार को पसंद आया और उसका पूरा परिवार इसी काम में लिप्त हो गया और अब वे अपना चूरन खुला न बेचकर पैकेट में बेचने लगे। पूरा परिवार मिलकर चूरन बनाने लगा और सोहन उसे साईकिल पर दुकान – दुकान बेचने लगा। धीरे – धीरे उनका व्यापर बढ़ने लगा और अब सोहन ने एक मोटर साईकिल भी खरीद ली और पूरे शहर में 100 से ऊपर दुकानों पर उनका चूरन बिकने लगा वो भी बंद और प्रिंटेड पैकेट में।

अब सोहन को यह लगने लगा कि हमारा परिवार अब मार्केट की मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है तो उसने शहर के पास ही एक जमीन खरीदी और एक फैक्ट्री लगा ली और बैंक से लोन लेकर पैकिंग की बड़ी मशीने ले आया और ज्यादा उत्पादन और बिक्री बढ़ाने के लिए स्टाफ भी रख लिया और अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन भी करा लिया।

सोहन ने दिन रात एक कर दी और अपने व्यापार को अन्य दूसरे शहरों तक फैला लिया वक्त के साथ – साथ और बिक्री बढ़ती गयी फिर उसने एक और फैक्ट्री दूसरे शहर में भी लगा ली इस तरह वह एक दिन एक बड़ा उद्योग पति बन गया।

एक दिन अपने ऑफिस में वह बैठा हुआ था तभी एक आदमी उसके पास नौकरी मांगने के लिए आता है और उसे देखते ही सोहन हैरान रह जाता है कि वह तो मोहन था।

सोहन ने मोहन से उसके बारे में पूछा कि आखिर तुम्हारी तो फैक्ट्री है तुम्हारे पिता जी बहुत अच्छे पैसे वाले हैं फिर तुम्हे नौकरी की क्या जरुरत पड़ गयी तब मोहन ने अपनी आप बीती सुनाई कि कुछ साल पहले मेरे पिता जी की मृत्यु हो गयी और व्यापार में काफी नुक्सान भी हो गया मै भी थोड़ा लापरवाह था व्यापर को संभाल नहीं पाया और सब कुछ ख़त्म हो गया बैंक का लोन था फैक्ट्री को बैंक ने नीलाम कर दिया अब मेरे पास सिर्फ एक रहने को घर है और कुछ नहीं तुम मेरे दोस्त हो मेरी कुछ मदद करो।

सोहन ने मोहन को अपनी कंपनी में नौकरी पर रख लिया और अब सोहन मालिक है और मोहन नौकर। लेकिन ये क्या हुआ कुछ साल पहले तो मोहन अमीर था और सोहन गरीब……………….?

दोस्तों, मोहन को जो भी मिला था वह उसके भाग्य से मिला था लेकिन उसने कर्म करना बंद कर दिया। एक कहावत है कि सोने के ईंटों से बने महल से अगर एक ईंट प्रतिदिन निकाल कर बेचा जाय और उससे अय्याशी किया जाय तो एक दिन ऐसा वक्त जरूर आ जायेगा जब एक भी ईंट नहीं बचेगी।

जबकि अगर परिश्रम करके पैसा कमा के प्रतिदिन एक ईंट खरीदा जाय तो एक दिन इतनी ईंटें इकट्ठी हो जाएँगी कि उनसे एक बड़ा महल तैयार किया जा सकता है।

गीता में भी भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है, कि इंसान के कर्म ही उसके भाग्य को निर्धारित करते हैं जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा फल मिलेगा क्योंकि भगवान् ने इंसान की सोच को बिलकुल स्वतंत्र रखा है। इंसान की सोच उसके कर्म को और उसके कर्म उसके भाग्य को निर्धारित करते हैं।

मोहन और सोहन दोनों में क्या फर्क था, मोहन को भाग्य ने दिया तो था लेकिन कर्म न करने के कारण एक दिन उसने अपना सब कुछ खो दिया और सोहन को यही नहीं पता कि भाग्य भी कोई चीज होती है उसने तो कर्म को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और एक दिन वही कर्म उसका भाग्य बन जाता है।

दोस्तों, अधिकतर लोग भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं, कि किसी न किसी दिन मेरा भी भाग्य खुलेगा, उस आदमी की तरह जो प्रतिदिन शंकर भगवान् के मंदिर में जाकर घंटा बजाता था और कहता था कि हे भोलेनाथ मेरे भाग्य का दरवाजा कब खुलेगा मेरी लॉटरी कब लगेगी।

एक दिन माता पार्वती भोलेनाथ से कहती हैं, कि हे प्रभु आपका ये भक्त प्रतिदिन मंदिर में आकर घंटा बजाता है और अपने भाग्य की दुहाई देता है कि मेरी लॉटरी कब लगेगी इस पर दया करें प्रभु इस पर भोलेनाथ कहते हैं कि हे देवी मै इसकी मंशा को पूरा तो करना चाहता हूँ पर मेरी भी एक मज़बूरी है कि जब तक मनुष्य कर्म नहीं करेगा तब तक मै उसको फल नहीं दे सकता मेरा ये भक्त अपनी लॉटरी तो निकलवाना चाहता है पर जब तक वह लॉटरी की टिकट नहीं खरीदेगा तब तक उसकी लॉटरी नहीं निकलेगी।

दोस्तों, हम पाना तो बहुत कुछ चाहते हैं, लेकिन उसके बदले हम देना कुछ नहीं चाहते हैं और प्रकृति का एक नियम है कि कुछ पाने के लिए कुछ देना पड़ता है और हमें जो भी देना है वह हमारे कर्म हैं। उन्हीं के माध्यम से हम जो करते हैं उसका फल हमें प्राप्त होता है।

अब सवाल यह उठता है कि हमारे मोहल्ले के चौधरी साहेब के पास बहुत प्रॉपर्टी है उनका इतना किराया आता है की उन्हें कुछ नहीं करना पड़ता बगैर कुछ किये ही उनका जीवन बहुत ही मजे से कट रहा है उनके बारे में आप क्या कहेंगे……………………………………………………………………….?

तो साहेब, एक बात यहां पर मै आपको बताना चाहूंगा कि चौधरी साहेब के पुरुखों ने यह प्रॉपर्टी बनायी है जिसका मजा चौधरी साहेब ले रहे हैं लेकिन अगर चौधरी साहेब कर्म करने में कंजूसी करेंगे तो एक दिन वह भी मोहन लाल बन जाएंगे और कोई कर्म योगी उनके सामने सोहन लाल की तरह उससे भी अमीर बनकर खड़ा होगा।

अंततः ऊपर वाले के यहां देर है पर अंधेर नहीं। जो भी कर्म आप करते हैं उसका फल आपको अवश्य मिलता है बस फर्क इतना है कि किसी को जल्दी मिल जाता है तो किसी को देर से लेकिन मिलता सबको है अच्छे कर्म का अच्छा फल और बुरे कर्म का बुरा फल

गीता में भगवान् श्री कृष्णा ने कहा है, कि ये मानव तू अपना कर्म सही तरीके से करता जा तुझे उसका फल अवश्य मिलेगा लेकिन कब मिलेगा यह मै निर्धारित करूँगा तेरा बस तेरे कर्मो पर है इसलिए तू अपने कर्मो पर ध्यान दे उसका फल देना मेरा काम है और मै अपने हिसाब से तुझे तेरे कर्मो का फल दूंगा लेकिन तू अपना कर्म करता रह इसी में तेरी भलाई है।

दोस्तों, जहाँ तक मै समझता हूँ कि इस आर्टिकल का मतलब आप समझ गये होंगे कि कर्म ही बड़ा होता है क्योंकि भाग्य की वजह से जो चीज हमें फ्री मेंं मिलता है हम उसकी कद्र नहीं करते हैं इसलिये एक दिन वह सब हम खो देते हैं, जबकि परिश्रम करके कर्म द्वारा हम जो प्राप्त करते हैं उसकी कीमत हमें पता होती है और उसे हम संभाल लेते हैं।

तो सीधी सी बात है कि कर्म और भाग्य में अगर बात की जाय तो कर्म ही बड़ा है।

इसलिए मै अपना कर्म कर रहा हूँ जो इस आर्टिकल को लिख रहा हूँ, आप अपना कर्म करें इस आर्टिकल को पढ़ें और इस पर अमल करें।

फल अवश्य मिलेगा…………………………….अवश्य मिलेगा……………………………….अवश्य मिलेगा

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आज के लिए सिर्फ इतना ही अगले आर्टिकल में हमारी फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए………

जय हिन्द……………………………………. जय भारत

आपका दोस्त/शुभचिंतक

अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर

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