चाणक्य नीति: अध्याय – 8 | आचार्य चाणक्य के 22 सर्वश्रेष्ठ विचार > जब एक छोटा सा बच्चा चंदू इन्हीं आचार्य चाणक्य की बातों को फॉलो करके चन्द्रगुप्त जैसा बड़ा योद्धा बन सकता है, तो इन विचारों को पढ़कर आप भी कुछ ना कुछ तो बन ही सकते हैं, इसलिए बने रहिये हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ आचार्य चाणक्य के सर्वश्रेष्ठ विचारों पर बात।
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चाणक्य नीति: अध्याय – 8
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, नीच लोगों के लिए धन ही सब कुछ है, औसत लोग धन तो चाहते हैं लेकिन अपमान के साथ नहीं बल्कि सम्मान के साथ किन्तु महापुरुष लोग धन की नहीं बल्कि मान-सम्मान की इच्छा रखते हैं क्योंकि मान-सम्मान ही उनका असली धन होता है।
विचार : 2 >
चाणक्य के अनुसार, दान के लिए किसी खाश समय या मुहूर्त की बाध्यता न मानते हुए ईख, जल, दूध, मूल, पान, फल और औषधि को खा लेने के बाद भी स्नान, दान आदि कार्य किये जा सकते है।
विचार : 3 >
चाणक्य ने कहा है कि, दीपक अंधकार को खा जाता है और काजल को पैदा करता है, अतः जो नित्य जैसा अन्न खाता है, वह वैसी ही संतान को जन्म देता है।
विचार : 4 >
चाणक्य का कहना है कि, एक हज़ार चाण्डालों के बराबर की बुराइयाँ एक यवन में होती हैं, इसलिए यवन सबसे नीच मनुष्य माना जाता है। यवन से नीच कोई नहीं होता है।
विचार : 5 >
चाणक्य ने यह भी कहा है कि, गुणी लोगों को ही धन देना चाहिए, अगुणी लोगों को कभी नहीं। आशय यह है कि, बादल समुद्र से जल लेता है और पृथ्वी पर वर्षा करता है। इसी वर्षा से पृथ्वी के मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्ष आदि जीवित रहते हैं। फिर यही जल कई गुना अधिक होकर नदियों में बहता हुआ समुद्र में ही चला जाता है। धनी लोगों को भी किसी योग्य व्यक्ति को ही कोई कारोबार करने के लिए धन देना चाहिए। इससे वह व्यक्ति कई लोगों का भला करता है और सहायता करने वाले व्यक्ति को भी लाभ होता है।
विचार : 6 >
आचार्य जी यहाँ पर स्नान के बारे में कहते हैं कि, तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, मैथुन करने पर तथा बाल कटवाने पर जब तक मनुष्य स्नान नहीं कर लेता तब तक वह चाण्डाल होता है।
विचार : 7 >
आचार्य जी यहाँ पर जल की गुणवत्ता बताते हुए कहते हैं कि, भोजन न पचने पर जल औषधि के सामान होता है, भोजन करते समय जल अमृत है तथा भोजन करने के तुरंत बाद जल विष का काम करता है।
विचार : 8 >
आचार्य जी कहते हैं कि, जिस ज्ञान पर आचरण न किया जाए, वह ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञान से मनुष्य का नाश हो जाता है। सेनापति के बिना सेना नष्ट हो जाती है और पति के बिना पत्नी नष्ट हो जाती है।
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विचार : 9 >
आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु, धन का भाइयों के हाथ में चला जाना, भोजन के लिए पराधीनता, इसे पुरुष के लिए बिडम्बना ही समझें।
विचार : 10 >
चाणक्य नीति में लिखा है कि, यज्ञ के बिना वेदों का अध्ययन निरर्थक है, दान किये बिना यज्ञ-शुभकर्म संपन्न नहीं होते, अर्थात श्रद्धा भाव से ही शुभकर्मों का सम्पादन करना चाहिए।
विचार : 11 >
आचार्य जी यहाँ पर भावना का महत्व बताते हुए कहते हैं कि, काष्ट, पाषाण या धातु की मूर्तियों की भी भावना और श्रद्धा से उपासना करने पर भगवान की कृपा से सिद्धि मिल जाती है।
विचार : 12 >
आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, ईश्वर न काष्ट में है, न मिट्टी में, न मूर्ति मे। वह केवल भावना में रहता है। अतः भावना ही मुख्य है।
विचार : 13 >
आचार्य जी ने कहा है कि, शान्ति के समान कोई तपस्या नहीं है, संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है, तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधि नहीं है और दया से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।
विचार : 14 >
आचार्य जी का कथन हैं कि, क्रोध यमराज है, तृष्णा वैतरणी नदी है, विद्या कामधेनु है और संतोष नंदन वन है।
विचार : 15 >
चाणक्य कहते हैं कि, गुण रूप की शोभा बढ़ाते हैं, शील-स्वभाव कुल की शोभा बढ़ाता है, सिद्धि विद्या की शोभा बढ़ाती है और भोग करना धन की शोभा बढ़ाता है।
विचार : 16 >
चाणक्य नीति के अनुसार, गुणहीन का रूप, दुराचारी का कुल तथा अयोग्य व्यक्ति की विद्या नष्ट हो जाती है। धन का भोग न करने से धन नष्ट हो जाता है।
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विचार : 17 >
चाणक्य नीति में लिखा है कि, भूमिगत जल शुद्ध होता है, पतिव्रता स्त्री शुद्ध होती है, प्रजा का कल्याण करने वाला राजा शुद्ध होता है तथा संतोषी ब्राह्मण शुद्ध होता है।
विचार : 18 >
चाणक्य नीति यह भी कहती है कि, असंतुष्ट ब्राह्मण तथा संतुष्ट राजा नष्ट हो जाते हैं, लज्जा करने वाली वेश्या नष्ट हो जाती है तथ निर्लज्ज कुलीन घर की बहु नष्ट हो जाती है।
विचार : 19 >
आचार्य चाणक्य की ही वाणी है कि. विद्वान हर जगह पूजा जाता है, अर्थात विद्वान का ही सम्मान होता है खानदान का नहीं। नीच खानदान में जन्म लेने वाला यदि विद्वान हो तो उसका सभी सम्मान करते हैं।
विचार : 20 >
चाणक्य कहते हैं कि, विद्वान की हर जगह प्रशंसा होती है, विद्वान को सर्वत्र गौरव मिलता है, विद्या से सब कुछ प्राप्त होता है और विद्या की सर्वत्र पूजा होती है।
विचार : 21 >
चाणक्य के अनुसार, मांसाहारी, शराबी तथा मूर्ख, पुरुष के रूप में पशु हैं। इनके भार से पृथ्वी दबी जा रही है।
विचार : 22 >
आचार्य चाणक्य हानि के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि, अन्नहीन राजा राष्ट्र को नष्ट कर देता है, मंत्रहीन ऋत्विज तथा दान न देने वाला यजमान भी राष्ट्र को नष्ट करते हैं।
दोस्तों, आशा करता हूँ कि ये विचार आपके भविष्य में आपके काम आयेंगें और आपके सामने आने वाले कठिनाइयों से आपको बचायेंगे, लेकिन सिर्फ पढ़ने मात्र से ही काम नहीं चलेगा बल्कि इन पर अमल भी करना पड़ेगा।
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आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हमारी फिर मुलाकात होगी, तब तक के लिए, जय हिन्द – जय भारत।
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आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com