चाणक्य नीति अध्याय 15 | चाणक्य के 19 प्रेरणादायक विचार

चाणक्य नीति अध्याय 15 | चाणक्य के 19 प्रेरणादायक विचार > आचार्य चाणक्य के विचारों को पढ़कर कोई भी व्यक्ति इतना तो समझदार और बुद्धिमान बन ही जाता है कि अपने समस्त जीवन काल में कम से कम हानि का शिकार होता है। वैसे तो लाभ और हानि का खेल हम सभी के जीवन में चलता ही रहता है लेकिन चाणक्य के विचार आपको इतना चालाक और बुद्धिमान बना देंगे कि आप पहले से ही हानि के प्रति सचेत हो जाएंगे। तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ समझदारी, बुद्धिमानी और चालाकी की बात।

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चाणक्य नीति अध्याय 15

चाणक्य नीति अध्याय 15

विचार : 1 >

आचार्य चाणक्य कहते है कि, जिस मनुष्य का ह्रदय सभी प्राणियों के लिए दया से द्रवीभूत हो जाता है, उसे ज्ञान, मोक्ष, जटा, भष्म-लेपन आदि से क्या लेना।

विचार : 2 >

आचार्य जी कहते हैं कि, जो गुरु एक अक्षर का भी ज्ञान कराता है, उसके ऋण से मुक्त होने के लिए, उसे देने योग्य पृथ्वी पर कोई पदार्थ नहीं है।

विचार : 3 >

आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, दुष्टों तथा काँटों का दो ही प्रकार का उपचार है। जूतों से कुचल देना या दूर से ही छोड़ देना।

विचार : 4 >

चाणक्य ने कहा है कि, गंदे वस्त्र पहनने वाले, गंदे दांतों वाले, अधिक भोजन करने वाले, कठोर शब्द बोलने वाले, सूर्योदय से सूर्यास्त होने तक सोये रहने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है। चाहे वह व्यक्ति साक्षात् चक्रपाणि भगवान विष्णु ही क्यों ना हो।

विचार : 5 >

चाणक्य पंडित का कहना है कि, मनुष्य जब कभी धनहीन हो जाता है तो उसके मित्र, सेवक और सम्बन्धी यहाँ तक कि स्त्री आदि भी उसे छोड़ देते हैं। और जब वही व्यक्ति दुबारा फिर धनवान हो जाता है तो वही लोग फिर उसके पास लौट आते है। इससे यह सिद्ध होता है कि धन ही मनुष्य का सच्चा मित्र है।

विचार : 6 >

चाणक्य नीति कहती है कि, लक्ष्मी वैसे ही चंचल होती है, परन्तु चोरी,जुआ, अन्याय और धोखा देकर कमाया हुआ धन भी स्थिर नहीं रहता। वह बहुत शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

विचार : 7 >

चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, योग्य स्वामी के पास आकर अयोग्य वस्तु भी सुंदरता बढ़ाने वाली हो जाती है, किन्तु अयोग्य के पास जाने पर योग्य काम की वस्तु भी हानिकारक हो जाती है।

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चाणक्य नीति

चाणक्य नीति अध्याय 15

विचार : 8 >

आचार्य जी कहते हैं कि, भोजन वही है जो ब्राह्मणों को खिला लेने के बाद बच जाए, प्रेम वही जो दूसरों पर किया जाए। बुद्धिं वही जो पाप न करे। धर्म वही जिसमे घमंड ना हो।

विचार : 9 >

पंडित चाणक्य ने यह भी कहा है कि, भले ही मणि पाँव के आगे लोटती हो और कांच सिर पर रखा हो किन्तु क्रय-विक्रय के समय कांच-कांच ही होता है और मणि-मणि ही।

विचार : 10 >

चाणक्य ने कहा है कि, शास्त्र अनंत हैं, विद्याएं अनेक हैं, किन्तु मनुष्य का जीवन बहुत छोटा है, उसमें भी अनेक विध्न हैं। इसलिए जैसे हंस मिले हुए दूध और पानी में से दूध को पी लेता है और पानी को छोड़ देता है, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि काम की बातें ग्रहण कर ले, बाकी को छोड़ दे।

विचार : 11 >

आचार्य जी कहते हैं कि, जो दूर से थककर घर में आये व्यक्ति को बिना उचित सम्मान दिए स्वयं भोजन कर लेता है, उसे चांडाल कहते हैं।

विचार : 12 >

आचार्य जी यह भी कहते हैं कि, मुर्ख व्यक्ति चारों वेदों तथा अनेक धर्मशास्त्रों को पढ़ते हैं। फिर भी जैसे भोजन के रस को करछी नहीं जानती वैसे ही मुर्ख अपनी आत्मा को नहीं जानते हैं।

विचार : 13 >

चाणक्य का कहना है कि, भवसागर में यह विपरीत चलनेवाली ब्राह्मण रूपी नौका धन्य है। इसके नीचे रहने वाले तो तर जाते हैं, किन्तु ऊपर बैठे हुए नीचे गिर जाते हैं।

विचार : 14 >

आचार्य जी का कथन है कि, अमृत का कोश, औषधियों का पति, अमृत से बने शरीर वाला चन्द्रमा सुन्दर कान्तिवाला होने पर भी सूर्यमण्डल में आने पर तेजहीन हो जाता है। दूसरे के घर में आने पर कौन छोटा नहीं होता।

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चाणक्य के विचार

चाणक्य नीति अध्याय 15

विचार : 15 >

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, कमलों के तालाब में रहने वाला भँवरा उनके रस को भी मामूली चीज समझता है। जब कमल सूख जाते हैं या वह दूसरी जगह चला जाता है, तब वहाँ उसे किसी साधारण फूल का रस भी पीने को मिल जाए, तो वह उसे बहुत बड़ी चीज समझता है। अर्थात एक संपन्न परिवार का व्यक्ति, जिस घर में प्रत्येक सुख-सुविधा हो जब उसे छोड़कर बाहर जाता है तो उसे वहाँ वो सुविधाएं नहीं मिल पाती तो मज़बूरी में उसे जो मिलता है उसे उसी में संतोष करना पड़ता है।

विचार : 16 >

आचार्य जी ब्राह्मण और लक्ष्मी के बैर की चर्चा करते हुए कहते हैं कि, जिसने क्रुद्ध होकर मेरे पिता समुद्र पी लिया, जिसने गुस्से में मेरे पति को लात मारी, जो बचपन से ही अपने मुंह में मेरी वैरिणी सरस्वती को धारण करते हैं और जो शिव की पूजा के लिए प्रतिदिन मेरे घर कमलों को तोड़ते हैं, इन ब्राह्मणों ने ही मेरा सर्वनाश किया है, अतः मै इनके घरों को छोड़े रहूँगी।

विचार : 17 >

चाणक्य कहते हैं कि, बंधन तो अनेकों हैं, किन्तु प्रेम की डोर का बंधन अन्य ही है। लकड़ी में छेद करने में भी निपुण भँवरा कमल के कोश में निष्क्रिय हो जाता है।

विचार : 18 >

आचार्य जी का कहना है कि, कट जाने पर भी चन्दन का वृक्ष सुगंध नहीं छोड़ता। बूढ़ा हो जाने पर भी हाथी अपनी लीलाओं को नहीं त्यागता। कोल्हू में पेरे जाने पर भी ईख मिठास को नहीं छोड़ती। इसी प्रकार गरीब हो जाने पर भी कुलीन अपने शील गुणों को नहीं छोड़ता।

विचार : 19 >

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, भगवान श्री कृष्ण ने अपने दोनों हाथों से एक छोटे से गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इससे उनका इतना नाम हुआ कि वह तीनों लोकों में गोवर्धन गिरधर कहलाने लगे। तीनों लोकों के स्वामी उन्ही भगवान कृष्ण को गोपियाँ अपने स्तनों के अगले भाग में उठा लेती हैं। किन्तु उनके इस काम की कहीं कोई गिनती नहीं है। कोई उनका नाम भी नहीं जानता। सच ही कहा है कि व्यक्ति को यश भी उसके पुण्यों या अच्छे कर्मों से ही मिलता है।

आशा करता हूँ कि, आचार्य चाणक्य के ये विचार आपके दिमाग को इतना मजबूत बनाएंगे कि आप अपने समस्त जीवन काल में कभी भी किसी छल या धोखे के शिकार नहीं होंगे और अपने ज्ञान के प्रयोग से सफलता के शिखर को प्राप्त करेंगे।

अगर आपको ऐसा लगता हो कि ये विचार वाकई में दमदार हैं तो इसे अन्य लोगों के साथ भी सोशल मीडिया पर Share करें। Like करें, Comment करें।

धन्यवाद | आपकी अतिकृपा होगी

आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com

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