चाणक्य नीति अध्याय 14 | चाणक्य के 20 प्रेरणादायक विचार > हर वह शख्स जो इस दुनियाँ में पैदा हुआ है अपने आप को महत्वपूर्ण समझता है लेकिन अपने आप को कुछ भी समझना और वाकई में होना दोनों में फर्क होता है क्योंकि एक मुर्ख भी अपने आप को ज्ञानी समझता है। लेकिन असली ज्ञानी कौन है यह कैसे पता चले…? खैर छोड़िये हम बेकार की बहस क्यों करें, हम तो सिर्फ इतना चाहते हैं कि आपके ज्ञान का भंडार फलें-फूलें, इसलिए आपके लिए लाये है चाणक्य नीति, तो बने रहियेगा हमारे साथ क्योंकि आज होगी सिर्फ और सिर्फ ज्ञान को बढ़ाने पर बात।
चाणक्य नीति अध्याय 14
विचार : 1 >
आचार्य चाणक्य कहते कि, अन्न, जल तथा सुन्दर शब्द, पृथ्वी के ये ही तीन रत्न हैं। मूर्खों ने पत्थर के टुकड़ों को रत्न का नाम दिया है।
विचार : 2 >
आचार्य जी कहते है कि, दरिद्रता, रोग, दुःख, बंधन और व्यसन सभी मनुष्य के अपराध रूपी वृक्षों के फल हैं।
विचार : 3 >
आचार्य जी मानव शरीर की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि, व्यक्ति को जीवन में धन, मित्र, पत्नी, पृथ्वी, ये सब फिर मिल सकते हैं लेकिन मानव शरीर एक बार त्यागने पर दुबारा नहीं मिलता।
विचार : 4 >
चाणक्य का कहना है कि, शत्रु चाहे कितना ही बलवान हो, लेकिन अनेक छोटे-छोटे व्यक्ति भी मिलकर उसका सामना करें तो उसे हरा देते हैं। छोटे-छोटे तिनकों से बना हुआ छप्पर तेज बारिश को भी रोक देते हैं। आशय यह है कि एकता में बड़ी शक्ति होती है।
विचार : 5 >
पंडित जी यह भी कहते हैं कि, जल में तेल, दुष्ट से कही गई गुप्त बात, योग्य व्यक्ति को दिया गया दान तथा बुद्धिमान को दिया गया ज्ञान थोड़ा होने पर भी अपने-आप विस्तार प्राप्त कर लेते हैं।
विचार : 6 >
चाणक्य पंडित का कहना है कि, धार्मिक कथाओं को सुनने पर, शमशान में तथा रोगियों को देखकर व्यक्ति की बुद्धि को जो वैराग्य हो जाता है, यदि ऐसा वैराग्य सदा बना रहे, तो भला कौन बंधन से मुक्त नहीं होगा।
विचार : 7 >
पंडित जी यह भी कहते हैं कि, गलती हो जाने पर जो पछतावा होता है, यदि ऐसी मति गलती करने से पहले ही आ जाए, तो भला कौन उन्नति नहीं करेगा और किसे पछताना पड़ेगा।
चाणक्य नीति अध्याय 14
विचार : 8 >
चाणक्य नीति कहती है कि, मनुष्य में कभी भी अहंकार की भावना नहीं रहनी चाहिए, उसे दान, तप, शूरता, विद्धता, सुशीलता और नीति-निपुणता का कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए।
विचार : 9 >
चाणक्य नीति में यह भी लिखा है कि, जो व्यक्ति ह्रदय में रहता है, वह दूर होने पर भी दूर नहीं है। जो ह्रदय में नहीं रहता वह समीप रहने पर भी दूर है।
विचार : 10 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, जिससे अपना कोई कल्याण करना हो, उसके सामने सदा मीठा बोलना चाहिए, क्योंकि बहेलिया हिरन को मारते समय सुन्दर स्वर में गीत गाता है।
विचार : 11 >
आचार्य जी यहाँ पर कुछ लोगों से दूरी बनाने के बारे में चर्चा करते हुए कहते हैं कि राजा, आग, गुरु और स्त्री इनके अधिक समीप रहने पर विनाश हो जाता है।
विचार : 12 >
चाणक्य के अनुसार, द्विजातियों का देवता अग्नि है, मनीषी लोग अपने ह्रदय में ही ईश्वर को देखते हैं। अल्प बुद्धि वाले प्रतिमा को ईश्वर समझते हैं। समदर्शी सर्वत्र ईश्वर को ही देखते हैं।
विचार : 13 >
चाणक्य का कहना है कि, जिसमें गुण है, वही मनुष्य जीवित है, जिसमे धर्म है, वही जीवित है। गुण और धर्म से हीन मनुष्य का जीवन व्यर्थ। है
विचार : 14 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, यदि एक ही कर्म से सारे जगत को वश में करना चाहते हो तो दूसरों की बुराई करने में लगी हुई वाणी को रोक लो।
चाणक्य नीति अध्याय 14
विचार : 15 >
चाणक्य यहाँ पंडितों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि, जो प्रसंग के अनुसार बातें करना, प्रभाव डालने वाला, प्रेम करना तथा अपनी शक्ति के अनुसार क्रोध करना जानता है उसे पंडित कहते हैं।
विचार : 16 >
आचार्य जी कहते हैं कि, एक ही वस्तु-स्त्री के शरीर को कामी लोग कामिनी के रूप में, योगी बदबूदार शव के रूप में तथा कुत्ते मांस के रूप में देखते हैं।
विचार : 17 >
पंडित चाणक्य का कहना है कि, बुद्धिमान व्यक्ति, सिद्ध औषधि, धर्म, अपने घर की कमियां, मैथुन, खाया हुआ ख़राब भोजन तथा सुनी हुई बुरी बातों को गुप्त रखें।
विचार : 18 >
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि, कोयल तब तक मौन रहकर दिनों को बिताती है, जब तक कि उसकी मधुर वाणी नहीं फुट पड़ती। यह वाणी सभी लोगों को आनंद देती है।
विचार : 19 >
चाणक्य कहते हैं कि धन, धर्म, धान्य, गुरु की सीख तथा औषधि, इनका संग्रह करना चाहिए, अन्यथा व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।
विचार : 20 >
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि, दुष्टों का साथ छोड़ दो, सज्जनों का साथ करो, रात-दिन अच्छे काम करो तथा ईश्वर को याद करो। यही मानव का धर्म है।
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धन्यवाद | आपकी अतिकृपा होगी
आपका दोस्त / शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर Founder & CEO motivemantra.com