सद्गुरु की जीवनी | जग्गी वासुदेव कौन हैं ?

सद्गुरु की जीवनी | जग्गी वासुदेव कौन हैं ? > सद्गुरु के नाम से मशहूर दाढ़ी और पगड़ी जिनकी पहचान है आजकल सोशल मीडिया पर भी काफी चर्चित हैं आखिर क्यों नहीं “जिसके पास ज्ञान होगा उसके आगे पीछे सारा जहान होगा” लोगों के सवालों का जबाब बेबाकी से देने वाले सद्गुरु आखिर कौन है ? क्या है उनके जीवन की कहानी सब कुछ विस्तार से बताएँगे, बस आप बने राहियेगा हमारे साथ, तो आइये अब शुरू करते हैं।

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सद्गुरु की जीवनी | जग्गी वासुदेव कौन हैं ?
सद्गुरु की जीवनी | जग्गी वासुदेव कौन हैं ?

सद्गुरु की जीवनी | जग्गी वासुदेव कौन हैं ?

सद्गुरु का प्रारंभिक जीवन

जग्गी वासुदेव उर्फ़ सद्गुरु का जन्म 5 सितम्बर 1957 को कर्नाटक के मैसूर शहर के एक तेलगु भाषी परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. वासुदेव है जो एक नेत्र चिकित्सक थे और माता का नाम सुशीला था उनके एक भाई और दो बहने हैं। जब वे महज 11 साल के थे तभी से वे योग करने लगे थे। सूत्र बताते हैं कि उन्हें योग की शिक्षा श्री राघवेंद्र राव द्वारा मिली थी जिन्हें मल्लाडिहल्ली स्वामी के नाम से जाना जाता था।

सद्गुरु का जंगली जीवन

बचपन से ही सद्गुरु को प्रकृति से बड़ा ही लगाव था वे कई-कई दिन तक जंगल में रहते थे अर्थात गायब हो जाते थे ऊँचे पेड़ों की डालियों पर घंटों बैठकर प्रकृति की हरियाली का आनंद लेना, घंटो तक अपने-आप को ध्यान में लगाये रखना उनकी रोजमर्रा की आदत सी बन गयी थी और जब वे घर को वापिस आते तो उनके झोले में बहुत सारे सांप होते थे जिन्हें वे जंगल से पकड़कर लाते थे, सूत्र बताते हैं कि वे सांपों को पकड़ने में बड़े ही माहिर हो चुके थे।

सद्गुरु का आध्यात्मिक जीवन

उनकी योग और ध्यान की आदत ने उन्हें आध्यात्मिक बनाया वे योग और ध्यान की बदौलत एक बुद्धजीवी इंसान बने जिसके कारण लोगों की रूचि उनमे बढ़ी और लोग उनसे अपने समस्यायों का समाधान के बारे में बात करते हैं और वे उनके सवालों का जबाब तथ्यों के साथ देते हैं।

लगभग 25 साल की उम्र में उनके साथ कुछ अजीबो-गरीब घटना होती है जिसके कारण उनका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। वे अपने जीवन के सुखों को त्यागते हुए चामुंडी पर्वत पर जाते हैं और एक विशाल पत्थर पर बैठकर ध्यान मुद्रा में डूबकर अध्यात्म का अनुभव प्राप्त करते हैं।

लगभग 1 साल तक ध्यान करने के बाद उन्हें जो अनुभूति हुई और उससे उन्हें जो प्रेरणा मिली उसके बाद उन्होंने यह निश्चय किया कि वे लोगों को योग के प्रति जागरूक करेंगे और उसके बाद से ही वे अपने अभियान को आगे बढ़ाने की दिशा में कार्य करने लगे।

सद्गुरु का शैक्षणिक जीवन

सद्गुरु ने मैसूर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातक की डिग्री हासिल की है। पढ़ाई के दौरान उन्हें मोटर साइकिल पर घूमना बहुत पसंद था वे मोटर साइकिल पर सवार होकर मैसूर की सड़कों पर खूब घूमते थे। कभी-कभी वे अपने दोस्तों के साथ चामुंडा पर्वत पर रात्रि भोज भी करते थे क्योंकि उन्हें प्रकृति से बड़ा लगाव था।

वे अपनी मोटर साइकिल पर बड़ी दूर-दूर यात्रा करते थे कालेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे व्यावसायिक दुनियाँ में भी आते हैं और कई तरीके के काम जैसे – पोल्ट्री फार्म, ईंट निर्माण, आदि के क्षेत्र में काम करते हैं जिससे उन्हें काफी अनुभव प्राप्त होता है। और वे एक सफल व्यवसायी बनते हैं।

सद्गुरु का पारिवारिक जीवन

सद्गुरु अपने अभियान को आगे बढ़ाने में लगे हुए थे और उसी दौरान कुछ वर्षों बाद ही उनकी मुलाकात एक महिला जिसका नाम विजया कुमारी था से होती है जो एक बैंक में कर्मचारी थी जिसे प्यार से लोग विज्जी कहते थे। विजया कुमारी अर्थात विज्जी उन्हें एक समारोह में मिलती है जहां पर वे अतिथि के रूप में गए थे।

उसके बाद से ही सद्गुरु और विजय कुमारी के बीच पत्रों का आदान-प्रदान होने लगा तत्पश्चात वे दोनों 1984 में एक दूसरे के साथ वैवाहिक बंधन में बंध जाते हैं। विवाह के 6 साल बाद उनके जीवन में एक नन्ही पारी आती है अर्थात 1990 में उनके घर में एक कन्या का जन्म होता है जिसका नाम उन्होंने राधे रखा।

उनकी पत्नी विजया कुमारी 1997 में इस दुनिया को अलविदा कह देती हैं अर्थात उनकी मृत्यु हो जाती है और उनकी बेटी राधे प्रसिद्द भारत नाट्यम नर्तकी है।

सद्गुरु का सामाजिक जीवन

सद्गुरु द्वारा स्थापित ईशा फाउंडेशन समाज को समर्पित एक ऐसी संस्था है जो बिना किसी लाभ के लालच के मानव कल्याण के लिए काम करती है। जिसके अंतर्गत लोगों के शारीरिक, मानसिक और आंतरिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए जोर दिया जाता है ताकि लोग इसके द्वारा अपने जीवन को सामान्य से बेहतरी की दिशा में ले जा सकें।

ईशा फाउंडेशन के अंतर्गत लगभग ढाई लाख स्वयं सेवी काम करते हैं, इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में है। यह संस्था पर्यावरण सम्बन्धी मामलों में बहुत ही प्रसंसनीय कार्य कर रही है इसका लक्ष्य है वृक्षारोपण के द्वारा पर्यावरण को हरा-भरा बनाना।

ईशा फाउंडेशन संस्थान को पर्यावरण को हरा-भरा बनाने के मामले में 2006 में गिनीज़ बुक रिकॉर्ड, 2008 में इंदिरा गाँधी पर्यावरण पुरस्कार तथा अध्यात्म के मामले में 2017 में पद्म-विभूषण सम्मान से नवाज़ा गया।

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सद्गुरु का ईशा योग केंद्र

यह संस्था वेलीगिरि पर्वत की तराई में 150 एकड़ की भूमि पर स्थित है जिसके चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। घने जंगलों के बीच स्थित ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा है जहाँ भरपूर वन्य जीवन मौजूद है। मानव के आंतरिक विकास के लिए बनाया गया यह योग केंद्र के चार मुख्य मार्ग – ज्ञान,कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के प्रति समर्पित है।

सद्गुरु एक प्रेरकवक्ता

सद्गुरु एक योग शिक्षक के साथ-साथ एक प्रसिद्द मोटिवेशनल स्पीकर अर्थात प्रेरकवक्ता भी हैं जो लोगों को जीवन से सम्बंधित सभी प्रकार के पहलुओं से बखूबी रूबरू कराते हुए उनके समस्यायों का समाधान बताते हैं ताकि लोग अपने जीवन को सामान्य से बेहतरी की दिशा में ले जा सकें।

सद्गुरु अपने श्रोताओं के सवालों का जबाब बड़े ही बेबाकी से दमदार तथ्यों के साथ देते हैं और लोग भी उनकी बातों पर पूरा भरोसा करते हुए उस पर अमल भी करते हैं, उनका यूट्यूब चैनल भी काफी प्रसिद्द है सोशल मीडिया पर उनके अच्छे-खाशे फॉलोवर भी हैं।

सद्गुरु का उद्देश्य

जग्गी वासुदेव उर्फ़ सद्गुरु के जीवन का मुख्य उद्देश्य है वृक्षारोपण द्वारा प्रकृति में हरियाली लाना और योग तथा ध्यान द्वारा मानव जीवन को बेहतर बनाना और इसके लिए उनकी संस्था बहुत ही तेजी से काम कर रही है और हमें पूरी उम्मीद ही नहीं बल्कि विश्वास भी है कि वे अपने अभियान के द्वारा ज्यादा से ज्यादा भूमि को हरा-भरा और ज्यादा से ज्यादा लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में सफल हो पाएंगे।

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धन्यवाद | जय हिन्द – जय भारत

आपका शुभचिंतक : अमित दुबे ए मोटिवेशनल स्पीकर (founder of motivemantra.com)

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