चलो अब घर चलते हैं || Emotional Video In Hindi

दिन भर की भागदौड़, तनाव, जद्दोजहद से निपटने के बाद शाम को जब व्यक्ति थक जाता है तो उसके अंदर से एक आवाज आती है कि चलो अब घर चलते हैं, और यह सुनने के बाद दिमाग को एक अलग ही तरह का शुकून मिलता है। क्योंकि घर तो आखिर घर ही होता है। आज के इस आर्टिकल में हम आपको घर के महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक बताएँगे, तो आइये अब शुरू करते हैं।

चलो अब घर चलते हैं || Emotional Video In Hindi

कार्य स्थल से अब घर चलते हैं

मानव जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए इंसान को भोजन की आवश्यकता होती है, जिसकी प्राप्ति के लिए उसे धन कमाना पड़ता है और धन को कमाने के लिए व्यक्ति को कोई ना  करना पड़ता है। इंसान जो कार्य करते हैं वही उनका व्यवसाय कहा जाता है, जैसे – किसान, व्यापारी, स्वरोजगारी, कर्मचारी, कलाकार, नेता, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील या फिर पुजारी आदि।

सबके सब कुछ न कुछ करते ही हैं, सुबह घर से निकलकर काम पर जाना, और दिन भर काम में व्यस्त रहते हुए शाम होते ही जब अंदर से एक आवाज़ आती है तो मन को बड़ा ही शुकुन मिलता है कि “चलो अब घर चलते” हैं।

शाम हुई अब घर चलते हैं

जो लोग काम पर जाते हैं और शाम को घर वापिस आते हैं, सिर्फ वही लोग यह नहीं कहते कि “चलो अब घर कहते हैं” बल्कि वे लोग भी जो कि फ्री होते हैं, दिन भर कितना भी घूम टहलकर मौज मस्ती करें लेकिन शाम होते ही उनके अंदर से भी एक आवाज़ आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

रात हुई अब घर चलते हैं

एक होती है शाम और उसके बाद आती है रात, जो शाम तक घर वापिस नहीं जा पाते वे रातों के राजा होते हैं, वे शाम की महफ़िलों में फंस जाने के कारण रात तक के फंसने पर मजबूर हो जाते हैं, लेकिन जब रात होती है और महफ़िल का रंग उतरने लगता है तो उसके अंदर से भी एक आवाज आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

पिकनिक से अब घर चलते हैं

लोग जब एक ही जगह पर काफी दिनों तक रहते हैं तो उनका मन कुछ दिन के लिए कहीं घूमने-टहलने का करता है, इसलिए लोग पिकनिक पर चले जाते हैं। घर से दूर पहाड़ी और हरियाली भरी इलाकों में खूब मौज मस्ती करते हैं और कहते हैं कि मजा आ गया तवियत मस्त हो गयी। 2 दिन, 3 दिन या फिर 5 दिन तक वह खूब एन्जॉय करता है लेकिन एक दिन ऐसा आता है जब उसके अंदर से भी एक आवाज़ आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

रिस्तेदारी से अब घर चलते हैं

आदमी अपने किसी रिस्तेदार के यहाँ जाता है जहाँ पर उसकी खूब खातिरदारी होती है, तरह-तरह के नास्ते, भोजन में कई तरह के व्यंजन, अच्छी-अच्छी बातें, सजा हुआ बिस्तर, तर्कसंगत मेजबानी। 1 दिन, 2 दिन, 3 दिन तक उसके बाद उसके अंदर से भी एक आवाज़ आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

स्कूल से अब घर चलते हैं

एक छात्र स्कूल जाता है, अपने सारे विषयों के पीरियड पढ़ता है, दोपहर का लंच करता है, अन्य छात्रों के साथ बतलाता और खेलता है, और आखिर में घर के लिए गृहकार्य मिलता है उसे लिखता और समझता है, यह सब करने के बाद जैसे ही छुट्टी का समय होता है, उसके भी अंदर से एक आवाज़ आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

 बहुत टेंशन है अब घर चलते हैं

पृथ्वी है तो जीवन है, जीवन है तो मनुष्य है, मनुष्य है तो उसकी जरूरते है, जरूरते हैं तो उसे पाने के लिए संघर्ष है, जहाँ संघर्ष है वहाँ बहुत सारा टेंशन है। इंसान कहीं भी रहे, कितने भी तनाव में रहे लेकिन कहीं ना कहीं उसे उस समय बड़ा ही शुकुन मिलता है जब उसके अंदर से एक आवाज़ आती है कि “चलो अब घर चलते हैं”

परदेश से अब घर चलते हैं

इंसान अपने लिए अपने परिवार की रोजी-रोटी के लिए अपना घर-बार छोड़कर अपने वतन से दूर परदेश जाता है, महीनों, सालों तक वह अपने घर से, अपने पत्नी और बच्चों से दूर रहता है और इस दौरान उसे उन सबकी बहुत याद भी आती है, लेकिन जब उसे अपने घर जाने की छुट्टी मिलती है तब उसे बड़ा शुकुन मिलता है और उसके अंदर से भी एक आवाज आती है कि “चलो अब घर चलते” हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों, सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि पक्षी, जानवर आदि भी शाम होते ही अपने-अपने ठिकाने की फ़िराक़ में लग जाते हैं। खासकर चिड़िया के बारे में तो बहुत सारे उदाहरण भी हैं चिड़िया के घोंसले के ऊपर बहुत सारी कहानियाँ भी हैं।

घर तो आखिर घर ही होता और जो शुकुन अपने घर में मिलता है वह दुनियाँ के किसी भी कोने में नहीं मिलता है, अपना घर चाहे जैसा हो अपना ही होता है, जिस बिस्तर पर हम प्रतिदिन सोते हैं उस पर हमें अलग ही शुकुन मिलता है।

हम अपने घर पर अपनी मर्जी के मालिक होते हैं, जब चाहे कुछ भी कर सकते हैं अब चाहे खाना हो. उठना हो, बैठना हो या फिर सोना हो किसी भी काम के लिए किसी का लिहाज नहीं करना होता है।

जबकि कहीं और चाहे वह कार्यस्थल हो, दोस्त का घर हो, रिस्तेदार का घर हो या फिर कोई पांच सितारा होटल ही क्यों ना हो हम अपने आप को आरामदायक इसलिए महसूस नहीं करते क्योंकि वहां हम पूरी तरह से कुछ भी करने के लिए आज़ाद नहीं होते हैं।

सीधी सी बात है कि सारा खेल है आज़ादी का और जो आज़ादी हमें अपने घर में मिलती है वो कहीं और नहीं मिलती शायद इसीलिए इंसान हर एक जगह से आखिर में ऊबकर यही कहता है कि “चलो अब घर चलते हैं”

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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