सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में अंतर

सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में अंतर > हालाँकि फर्क बहुत हैं लेकिन किस तरह का, सब कुछ बताएँगे, आपके दिमाग में पनप रहे हर एक सवाल के जबाब से आपको रूबरू भी कराएँगे, बस बने रहिएगा हमारे साथ, क्योंकि हम नहीं करते इधर-उधर की बात, हमारे वेबसाइट पर होती है सिर्फ और सिर्फ काम की बात, तो आइये अब शुरू करते हैं।

सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में अंतर

सरकारी नौकरी

काम करने के घंटे

सरकारी नौकरी में काम करने के घंटे फिक्स होते हैं जो सामान्यतः 8 घंटे होते हैं सिर्फ एक टीचर की नौकरी ऐसी होती है जिसमें 6 घंटे की ड्यूटी होती है बाकी लगभग सभी सरकारी नौकरियों में ड्यूटी का समय सामान्यतः 8 घंटे ही होता है।

बात थोड़ी कड़वी है शायद सरकारी कर्मचारियों को थोड़ी बुरी भी लगे लेकिन यह काफी हद तक सच भी है कि ज्यादातर वे अपने 8 घंटे की ड्यूटी में भी पूरी तरह से काम नहीं करना चाहते हैं।

वे अपनी सीट पर तो मौजूद होते हैं लेकिन पूरी तरह से अपने काम पर ध्यान नहीं देते हैं हालाँकि सभी सरकारी कर्मचारी आलसी और कामचोर नहीं होते हैं लेकिन ज्यादातर इस श्रेणी में आते हैं।

काम करने का तरीका

ज्यादातर सरकारी नौकरियों में कर्मचारी लोग काम को बोझ ही समझते हैं क्योंकि उनका मानना होता है कि उन्हें जितना परिश्रम करना था वह उस नौकरी को हासिल करने में ही कर चुके हैं अब तो उन्हें सिर्फ फॉर्मेलिटी पूरी करनी है और तनख्वाह लेनी है।

यह बात मै एक टीचर की जुबान से प्रत्यक्ष ही सुन चुका हूँ और मुझे इस बात को सुनने के बाद बड़ा ही ताज्जुब हुआ कि हमारे देश के टीचरों की अगर ऐसी सोच होगी तो हमारे बच्चों के भविष्य का क्या होगा।

एक बार मै दिल्ली मेट्रो में सफर कर रहा था, मेरे बगल में ही दो सरकारी कर्मचारी बैठे हुए थे जिनके पास एक चार्ट था जो शायद उनके विभाग के छुट्टियों का लिस्ट था जिसे देखकर वे दोनों ही पुरे साल के छुट्टियों का हिसाब- किताब लगा रहे थे, उनमे कुछ छुट्टियाँ ऐसी भी थीं जो संडे को पड़ रही थीं। जिसके बारे में वे दोनों बात कर रहे थे कि इस छुट्टी का तो नुकसान हो गया।

मुझे भी अपना सफर काटना था और अपनी कान को उनकी बातों को सुनने में लगा दिया परिणामतः उनकी सभी बातों को सुनने के बाद मुझे जो लगा कि सरकारी कर्मचारी एक नंबर के आलसी और कामचोर होते हैं। हालाँकि सभी सरकारी कर्मचारी ऐसे नहीं होते लेकिन ज्यादातर होते हैं।

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काम के बदले वेतन

सरकारी नौकरी में लोगों को अच्छा वेतन मिल जाता हैं, जो कर्मचारी के पदानुसार होता है, और यह लगभग २० हजार से लेकर ३ लाख रूपये तक हो सकता है हालाँकि इससे ऊपर सबसे ज्यादा वेतन भारत के राष्ट्रपति का होता है जो ५ लाख रूपये है लेकिन वे किसी के नौकर नहीं बल्कि देश के राजा की उपाधि से नवाजे जाते हैं।

सरकारी नौकरियों में समयानुसार सामान्यतः सभी कर्मचारियों के वेतन बढ़ते रहते हैं, सरकारी भत्ते मिलते हैं और प्रमोशन भी होता है। और जब से छठां वेतन आयोग आया है तभी से उनकी बल्ले-बल्ले हो गयी है क्योंकि इसके बाद से ही सरकारी कर्मचारियों के वेतन में अच्छी-खाशी बढ़ोत्तरी होने लगी है।

सुरक्षा की गारंटी

सरकारी नौकरियों में सबसे जो खाश बात होती है वह होती है सुरक्षा की गारंटी जिसके अंतर्गत जीवन भर नौकरी की गारंटी, रिटायरमेन्ट के बाद ग्रेचुटी और पेंशन की सुविधा जिसकी वजह से कर्मचारियों का पूरा जीवन सुरक्षित रहता है और यही कारण है जो की भारत का ज्यादातर नागरिक सरकारी नौकरी पाना चाहता है।

प्राइवेट नौकरी

काम करने के घंटे

प्राइवेट नौकरियों में काम करने के घंटे फिक्स नहीं होते, यह 8 घंटे से लेकर 12 घंटे तक हो सकते हैं और यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह फर्म किस टाइप का है।

अगर फैक्टरी या कोई बड़ी कंपनी है तो 8 घंटे, कोई ऑफिस, कंपनी या बड़ा शोरूम है तो 10 घंटे और कोईं छोटी फर्म या दुकान है तो 12 घंटे तक भी हो सकता है। जैसे चौकीदार या ड्राइवर आदि की नौकरियों में ज्यादातर 12 घंटे की ड्यूटी होती है और उस कर्मचारी को आने-जाने में भी कुछ समय लगता है अनुमानतः उसे कुल 14 से 15 घंटे तक का समय देना पड़ सकता है।

काम करने का तरीका

प्राइवेट नौकरियों में काम करने वाले काम करने वालों को सिर्फ एक ही तरीके के काम नहीं करने होते हैं बल्कि अपने मुख्य काम के साथ ही अन्य काम भी करने पड़ते हैं जैसा उनका मालिक चाहता है। जैसा कि एक कहावत है कि नौकरी के 9 काम दसवां हांजी और अगर वह हांजी नहीं करता है तो उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाती है। ,

अर्थात दिन भर तो उसने काम किया ही लेकिन जाते-जाते भी उसे कोई अन्य काम करने पड़ सकते हैं जो उसके काम के हिस्से में नहीं आता है फिर भी उसे करना ही पड़ता है नहीं तो मालिक जी नाराज हो जायेंगे और उनकी नाराजगी उस कर्मचारी पर भारी पड़ सकती है। अब बेचारा कर्मचारी मरता क्या ना करता लाख चाहते हुए भी वह उस काम को करने से इंकार नहीं कर सकता आखिर रोजी-रोटी का सवाल होता है।

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काम के बदले वेतन

मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में प्राइवेट नौकरियों में काम करने वालों कर्मचारियों की सैलरी कुछ इस प्रकार की होती है।

  • दुकान या शोरूम में काम करने वालों की सैलरी 8 से 25 हजार रूपये तक अलग-अलग पदानुसार हो सकती हैं।
  • काल सेंटर या ऑफिस में काम करने वालों की सैलरी 8 हजार से लेकर 40 हजार तक पदानुसार हो सकती है।
  • फैक्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों से लेकर मैनेजर तक की सैलरी 8 हजार से लेकर 1 या 1.5 लाख तक पदानुसार हो सकती है।
  • औसत कंपनियों में काम करने वाले मार्केटिंग एक्सक्यूटिव से लेकर मार्केटिंग मैनेजर तक को 20 हजार से लेकर 1 लाख रूपये तक की सैलरी पदानुसार मिलती है।
  • मल्टीनेशनल और आईटी कंपनियों में लगभग 20 हजार से लेकर 3 लाख रूपये महीने तक की सैलरी पदानुसार साथ ही अन्य जरुरी सुविधाएँ भी मिलती है।
  • बड़ी कंपनियों में जैसे टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी, विप्रो, डाबर, हिंदुस्तान लीवर आदि में बहुत ही अच्छी सैलरी तो मिलती ही है साथ ही अन्य सुविधाएँ भी मिलती हैं।
  • बड़े कंपनियों में सीनियर पदों पर विराजमान लोगों को कई लाख रूपये महीना तक वेतन मिलता है जो शायद भारत के राष्ट्रपति की सैलरी से ज्यादा ही होती है साथ ही गाड़ी, बंगला समेत तमाम जरुरी सुविधाएँ भी मिलती हैं।

सुरक्षा की गारंटी

प्राइवेट नौकरियों में सुरक्षा की कोई भी गारंटी नहीं होती है बल्कि उनकी नौकरी उनके मालिक की कृपा दृष्टि पर ही निर्भर रहती है। जब तक वे काम के लायक हैं और अपने मालिक के दया दृष्टि पर निर्भर होते हैं तभी तक उनकी नौकरी भी होती है लेकिन जब वे काम की दृष्टि से अपने मालिक की दृष्टि से कमजोर पड़ जाते हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।

प्राइवेट नौकरियों में रिटायरमेंट के समय अलग-अलग प्रावधान होते हैं और वह इस बात पर निर्भर करता है कि कंपनी या फर्म का आकर और नियम क्या है।

किसी कंपनी में फंड और ग्रेचुटी आदि की सुविधा होती है तो किसी में सिर्फ ग्रेचुटी होती है तो किसी में कुछ भी नहीं होता है तो कहीं कहीं पर मालिक और नौकर के सम्बन्धो पर भी बहुत कुछ निर्भर होता है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो प्राइवेट नौकरियों में ढाक के तीन पात वाली कहानी होती है कि जहाँ जो फिट बैठा वही ढर्रा अपना लिया। सब कुछ वहां के मालिक के मिजाज पर निर्भर होता है वही जो चाहे कर सकता है।

अगर मालिक सभ्य और दयालु किस्म का इंसान है तो कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले लेकिन अगर वह क्रूर सिंह जैसा हैवान है तो उसके नौकरों की थल्ले-थल्ले। इसीलिए तो कहा गया है कि नौकरी हो तो सरकारी नहीं तो बेच लो तरकारी।

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सरकारी और प्राइवेट में कौन सी नौकरी बेहतर है ?

जैसे हर एक क्षेत्र में और उनके काम में कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक पहलु होते हैं, बिलकुल उसी तरह सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में भी हैं और वह क्या हैं आइये जानते हैं उनके बारे में…..

सरकारी नौकरी > शुकुन, सुरक्षा लेकिन सीमित तरक्की

अगर आपको शुकुन चाहिए, जीवन में ज्यादा टेंशन नहीं चाहते है, एक शांत, सीमित और सुरक्षित जीवन जीते हुए आराम से बुढ़ापा काटते हुए इस दुनियाँ से विदा होना चाहते हैं तो आपको सरकारी नौकरी में जाना चाहिए।

लेकिन एक बात याद रखें कि आप जीवन भर एक सीमित इंसान ही रह जाएंगे क्योंकि जब तक जीवन में प्रेसर और टेंशन नहीं होगा तब तक इंसान कुछ और नया या फिर बेहतर करने की कोशिश नहीं करेगा इसलिए जीवन में कोई बड़ा मुकाम भी हासिल नहीं कर पायेगा।

क्या आप ने किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपने जीवन में कोई बड़ा मुकाम हासिल करते देखा है ? अपने आस-पास नज़र दौड़ा कर देखिये और सोचिये मई जो कहना चाहता हूँ वह बात आपको समझ में आ जाएगी।

प्राइवेट नौकरी > टेंशन, व्यस्तता लेकिन असीमित तरक्की

अगर आप अपने आपको शारीरिक और मानसिक रूप से व्यस्त रखते हुए, समयानुसार अपने आप को अपग्रेड करते हुए जीवन में कुछ बड़ा करने की फ़िराक में खुद को अपने काम में मस्त रखते हुए आगे बढ़ना चाहते हैं तो प्राइवेट नौकरी में कोई बुराई नहीं है।

क्योंकि प्राइवेट नौकरी में अगर आपको अच्छी कंपनी मिल जाती है और आपका काम करने का तरीका उन्हें पसंद आ जाता है तो आप वहीं पर सरकारी नौकरी से ज्यादा पैसे कमा सकते हैं।

जिसके पीछे का एक कारण यह भी है कि प्राइवेट नौकरियों में काम का काफी प्रेसर रहता है और उन्हीं प्रेसरों की वजह से व्यक्ति कुछ ना कुछ नया और बेहतर करने की कोशिश करता है।

और इंसान जब कुछ नया और बेहतर करने की कोशिश करता है तो वह उसमे काफी हद तक कामयाब भी होता है फर्क सिर्फ इतना है कि कोई ज्यादा तो कोई कम लेकिन कोशिश करने से इंसान आगे बढ़ता है।

निष्कर्ष

दोस्तों, हमने इस आर्टिकल के माध्यम से सरकारी और प्राइवेट नौकरियों के अंतर के बारे में बताया है जो कि हमने अपने जीवन के अनुभव से प्राप्त किया है जिससे यह ज्ञात होता है कि सरकारी नौकरी और प्राइवेट नौकरी में बहुत अंतर है क्योंकि सरकारी नौकरी बहुत ही सुरक्षित होता है बल्कि उसके मुकाबले प्राइवेट नौकरी उतना ही असुरक्षित होता है।

लेकिन एक बात यहाँ पर मै यह भी कहना चाहूंगा कि हर किसी को तो सरकारी नौकरी मिल नहीं सकता और वैसे भी प्राइवेट नौकरी भी बुरी नहीं होती क्योंकि इसमें आपकी काबिलियत आपको जमीं से आसमान तक ले जा सकती है और आप एक दिन अपना खुद का व्यापार भी कर सकते हैं।

भारत में सरकारी महकमे में सबसे ज्यादा सैलरी भारत के राष्ट्रपति की होती है जो 5 लाख रूपये महीना है लेकिन अगर आप अपने टीवी में दिखने वाले न्यूज़ चैनल के एंकरों की सैलरी सुनेंगे तो आपके होश उड़ जायेंगे।

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साहेब नौकरी कोई भी हो सरकारी हो या फिर प्राइवेट अगर आप में काबिलियत है तो आप अपने कामयाबी का झंडा कहीं भी गाड़ सकते हैं, इसलिए ज्यादा लफड़े में ना पड़ें कि आप किस प्रकार की जॉब में हैं बल्कि आप इस बात पर ध्यान दें कि आप जहाँ भी हैं वहां पर आपकी हैसियत क्या है।

आप कुछ ऐसा करें कि आप लोगों से नहीं बल्कि लोग आप से प्रभावित हों अब चाहे वह जगह सरकारी नौकरी हो या प्राइवेट या फिर कोई और ही जगह क्यों ना हो बस आप जहाँ भी जाएँ बस छा जाएँ।

आप कहाँ काम करते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि आप कैसे और किस से तरह काम करते हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके General Knowledge को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में ले जायेगा, आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द-जय भारत।

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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