गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita

 

 

दोस्तों, गीता अध्याय-१५ पुरुषोत्तम योग के अंत में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि हे कुन्तीपुत्र, जो कोई भी मुझे संशयरहित होकर पुरुषोत्तम भगवान के रूप में जानता है, वह सब कुछ जानने वाला है, अतएव हे भरतपुत्र, वह व्यक्ति मेरी पूर्ण भक्ति में रत होता है। हे अनघ, यह वैदिक शास्त्रों का सर्वाधिक गुप्त अंश है, जिसे मैंने अब प्रकट किया है, जो कोई इसे समझता है, वह बुद्धिमान हो जायेगा और उसके प्रयास पूर्ण होंगे। इससे आगे गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से क्या कहते है ? आइये जानते हैं इस आर्टिकल के माध्यम से…..

गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita
गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita

गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita

श्री भगवानुवाच

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१-२-३

अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोग्यव्यवस्थितिः। 

दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌।।

अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शांतिरपैशुनम्‌। 

दया भूतेष्वलोलुपत्वं मार्दवं हीरचापलम्‌।।  

तेजः क्षमाः धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता। 

भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।। 

भावार्थ

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे भरतपुत्र, निर्भयता, आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म-संयम, यज्ञपराणयता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोधविहीनता, त्याग, शांति, छिद्रान्वेषण में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभविहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईर्ष्या तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति – ये सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रकृति से संपन्न देवतुल्य पुरुषों में पाये जाते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=४ 

दम्भो दर्पोभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च। 

अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदमासुरीम्‌।।  

भावार्थ

हे पृथापुत्र, दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोरता तथा अज्ञान – ये आसुरी स्वभाव वाले गुण हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=५ 

दैवी सम्पद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता। 

मा शुचः सम्पदं दैवीमभिजातोऽसि पाण्डव।।  

भावार्थ 

हे अर्जुन, दिव्य गुण मोक्ष के लिए अनुकूल हैं और आसुरी गुण बन्धन दिलाने के लिए हैं, हे पाण्डुपुत्र, तुम चिंता मत करो, क्योंकि तुम दैवी गुणों से युक्त होकर जन्मे हो।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=६ 

द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन्दैव आसुर एव च। 

दैवो विस्तरशः प्रोक्त आसुरं पार्थ मे शृणु।। 

भावार्थ

हे पृथापुत्र, इस संसार में सृजित प्राणी दो प्रकार के हैं – दैवी तथा आसुरी, मै पहले ही विस्तार से तुम्हें दैवी गुण बतला चुका हूँ, अब मुझसे आसुरी गुणों के विषय में सुनो।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=७ 

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः। 

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।। 

भावार्थ

हे कुन्तीपुत्र, जो आसुरी हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, उनमे न तो पवित्रता, न उचित आचरण और न ही सत्य पाया जाता है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=८  

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्‌।  

अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्‌।।  

भावार्थ

हे धनञ्जय, वे कहते हैं कि यह जगत मिथ्या है, इसका कोई आधार नहीं है और इसका नियमन किसी ईश्वर द्वारा नहीं होता, उनका कहना है कि यह कामेच्छा से उत्पन्न होता है और काम के अतिरिक्त कोई अन्य कारण नहीं है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=९ 

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः। 

प्रभवन्त्युग्रकर्माण क्षयाय जगतोऽहिता।।  

भावार्थ

हे  अर्जुन,ऐसे निष्कर्षों का अनुगमन करते हुए आसुरी लोग, जिन्होंने आत्म-ज्ञान खो दिया है और जो बुद्धिहीन हैं, ऐसे अनुपयोगी एवं भयावह कार्यों में प्रवृत्त होते हैं जो संसार का विनाश करने के लिए होता है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१०  

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः। 

मोहाद्गृहीत्वासद्गग्राहांप्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।। 

भावार्थ

हे महाबाहो, कभी न संतुष्ट होने वाले काम का आश्रय लेकर तथा गर्व के मद एवं मिथ्या प्रतिष्ठा में डूबे हुए आसुरी लोग इस तरह मोहग्रस्त होकर सदैव क्षणभंगुर वस्तुओं के द्वारा अपवित्र कर्म का व्रत लिए रहते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=११-१२ 

चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिताः। 

कामोपभोगपरमा एतावदिति निश्चिताः।।

आशपाशशतैर्बद्धाः कामक्रोधपरायणाः। 

ईहन्ते कामभोगार्थमन्यायेनार्थसञ्चयान्‌।।   

भावार्थ

हे अर्जुन, उनका विश्वास है कि इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता की मूल आवश्यकता है, इस प्रकार मरणकाल तक उनको अपार चिंता होती रहती है, वे लाखों इच्छाओं के जाल में बँधकर तथा काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रियतृप्ति के लिए अवैध ढंग से धनसंग्रह करते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१३-१४-१५ 

इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम्‌। 

इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्द्धनम्‌।।  

असौ मया हतः शत्रुर्हनिष्ये चापरानपि। 

ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान्सुखी।। 

आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया। 

यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः।। 

भावार्थ

हे अर्जुन, आसुरी व्यक्ति सोचता है, आज मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मै और अधिक धन कमाऊँगा। इस समय मेरे पास इतना हैकिन्तु भविष्य में यह  बढ़कर और अधिक हो जायेगा। वह मेरा शत्रु है और मैंने उसे मार दिया है और मेरे अन्य शत्रु भी मार दिए जायेंगे। मै सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ, मै भोक्ता हूँ, मै सिद्ध, शक्तिमान तथा सुखी हूँ, मै सबसे धनी व्यक्ति हूँ और मेरे आस-पास मेरे कुलीन सम्बन्धी हैं। कोई अन्य मेरे समान शक्तिमान तथा सुखी नहीं है, मै यज्ञ करूँगा, दान दूंगा और इस तरह आनंद मनाऊँगा, इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१६  

अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृत्ताः। 

प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ।। 

भावार्थ

 हे पार्थ, इस प्रकार अनेक चिंताओं से उद्दिग्न होकर तथा मोहजाल में बँधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आशक्त हो जाते हैं और में गिरते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१७ 

आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः। 

यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्‌।।   

भावार्थ

हे धनञ्जय, अपने को श्रेष्ठ मानने वाले तथा सदैव घमंड करने वाले, संपत्ति तथा मिथ्या प्रतिष्ठा से मोहग्रस्त लोग किसी विधि-विधान का पालन न करते हुए कभी-कभी नाममात्र के लिए बड़े ही गर्व के साथ यज्ञ करते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१८ 

अहङ्कारं बलं दर्प कामं क्रोधं च संश्रिताः। 

मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः।। 

भावार्थ

हे कुन्तीपुत्र, मिथ्या अहंकार, बल, दर्प, काम तथा क्रोध से मोहित होकर आसुरी व्यक्ति अपने शरीर में स्थित भगवान से ईर्ष्या और वास्तविक धर्म की निंदा करने लगते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=१९  

तानहं द्विषतः क्रूरान्संसारेषु नराधमान्‌। 

क्षिपाम्यजस्रमशुभानासुरीष्वेव योनिषु।।  

भावार्थ

हे महाबाहो,  जो लोग ईर्ष्यालु तथा क्रूर हैं और नराधम है, उन्हें मै निरंतर विभिन्न आसुरी योनियों में, भवसागर में डालता रहता हूँ।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=२० 

आसुरीं योनिमापन्ना मूढा जन्मनि जन्मनि। 

माम्प्राप्यैव कौन्तेय ततो यांत्यधमां गतिम्।।

भावार्थ

हे कुन्तीपुत्र, ऐसे व्यक्ति आसुरी योनि में बारम्बार जन्म ग्रहण करते हुए कभी भी मुझ तक पहुँच पाते, वे धीरे-धीरे अत्यन्त अधम गति को प्राप्त होते हैं।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=२१ 

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। 

कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌।। 

भावार्थ

हे अर्जुन, इस नरक के तीन द्वार हैं – काम, क्रोध तथा लोभ, प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दें, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=२२ 

एतैर्विमुक्तः कौन्तेय तमोद्वारैस्त्रिभिर्नरः। 

आचरत्यात्मनः श्रेयस्ततो याति परां गतिम्।। 

भावार्थ

हे कुन्तीपुत्र, जो व्यक्ति इन तीनों नरक द्वारों से बच जाता है, वह आत्म-साक्षात्कार के लिए कल्याणकारी कार्य करता है और इस प्रकार क्रमशः परम गति को प्राप्त होता है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=२३ 

यः शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारतः। 

न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गति गतिम्।। 

भावार्थ

हे धनञ्जय, जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परमगति की प्राप्ति हो पाती है।

गीता अध्याय-१६ श्लोक=२४ 

तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ। 

ज्ञात्वा शस्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।। 

भावार्थ

हे अर्जुन, अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है, उसे ऐसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके।

 

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे दैव आसुर संपदा विभाग योगो नाम षोडशोऽध्यायः समाप्त॥

इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद्भगवद्गीता के श्री कृष्ण- अर्जुन संवाद में देव असुर संपदा विभाग योग नामक सोलहवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ।

।। हरिः ॐ तत् सत्।।

गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita

सारांश

दोस्तों, गीता अध्याय-16 को देव असुर संपत्ति विभाग योग के नाम से जाना जाता है, जिसमें श्री कृष्ण ने अर्जुन को अच्छाई-बुराई, सत्य-असत्य, प्रकाश-अंधकार आदि के बारे में विस्तार पूर्वक बतलाया है।

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे भरतपुत्र, निर्भयता, आत्मशुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म-संयम, यज्ञपराणयता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्यता, क्रोधविहीनता, त्याग, शांति, छिद्रान्वेषण में अरुचि, समस्त जीवों पर करुणा, लोभविहीनता, भद्रता, लज्जा, संकल्प, तेज, क्षमा, धैर्य, पवित्रता, ईर्ष्या तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति – ये सारे दिव्य गुण हैं, जो दैवी प्रकृति से संपन्न देवतुल्य पुरुषों में पाये जाते हैं।

हे पृथापुत्र, दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, कठोरता तथा अज्ञान – ये आसुरी स्वभाव वाले गुण हैं। हे अर्जुन, दिव्य गुण मोक्ष के लिए अनुकूल हैं और आसुरी गुण बन्धन दिलाने के लिए हैं, हे पाण्डुपुत्र, तुम चिंता मत करो, क्योंकि तुम दैवी गुणों से युक्त होकर जन्मे हो। हे पृथापुत्र, इस संसार में सृजित प्राणी दो प्रकार के हैं – दैवी तथा आसुरी, मै पहले ही विस्तार से तुम्हें दैवी गुण बतला चुका हूँ, अब मुझसे आसुरी गुणों के विषय में सुनो।

 

हे कुन्तीपुत्र, जो आसुरी हैं, वे यह नहीं जानते कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, उनमे न तो पवित्रता, न उचित आचरण और न ही सत्य पाया जाता है। हे धनञ्जय, वे कहते हैं कि यह जगत मिथ्या है, इसका कोई आधार नहीं है और इसका नियमन किसी ईश्वर द्वारा नहीं होता, उनका कहना है कि यह कामेच्छा से उत्पन्न होता है और काम के अतिरिक्त कोई अन्य कारण नहीं है।

हे  अर्जुन,ऐसे निष्कर्षों का अनुगमन करते हुए आसुरी लोग, जिन्होंने आत्म-ज्ञान खो दिया है और जो बुद्धिहीन हैं, ऐसे अनुपयोगी एवं भयावह कार्यों में प्रवृत्त होते हैं जो संसार का विनाश करने के लिए होता है। हे महाबाहो, कभी न संतुष्ट होने वाले काम का आश्रय लेकर तथा गर्व के मद एवं मिथ्या प्रतिष्ठा में डूबे हुए आसुरी लोग इस तरह मोहग्रस्त होकर सदैव क्षणभंगुर वस्तुओं के द्वारा अपवित्र कर्म का व्रत लिए रहते हैं।

हे अर्जुन, उनका विश्वास है कि इन्द्रियों की तुष्टि ही मानव सभ्यता की मूल आवश्यकता है, इस प्रकार मरणकाल तक उनको अपार चिंता होती रहती है, वे लाखों इच्छाओं के जाल में बँधकर तथा काम और क्रोध में लीन होकर इन्द्रियतृप्ति के लिए अवैध ढंग से धनसंग्रह करते हैं।

 

हे अर्जुन, आसुरी व्यक्ति सोचता है, आज मेरे पास इतना धन है और अपनी योजनाओं से मै और अधिक धन कमाऊँगा। इस समय मेरे पास इतना हैकिन्तु भविष्य में यह  बढ़कर और अधिक हो जायेगा। वह मेरा शत्रु है और मैंने उसे मार दिया है और मेरे अन्य शत्रु भी मार दिए जायेंगे।

मै सभी वस्तुओं का स्वामी हूँ, मै भोक्ता हूँ, मै सिद्ध, शक्तिमान तथा सुखी हूँ, मै सबसे धनी व्यक्ति हूँ और मेरे आस-पास मेरे कुलीन सम्बन्धी हैं। कोई अन्य मेरे समान शक्तिमान तथा सुखी नहीं है, मै यज्ञ करूँगा, दान दूंगा और इस तरह आनंद मनाऊँगा, इस प्रकार ऐसे व्यक्ति अज्ञानवश मोहग्रस्त होते रहते हैं।

 हे पार्थ, इस प्रकार अनेक चिंताओं से उद्दिग्न होकर तथा मोहजाल में बँधकर वे इन्द्रियभोग में अत्यधिक आशक्त हो जाते हैं और में गिरते हैं। हे धनञ्जय, अपने को श्रेष्ठ मानने वाले तथा सदैव घमंड करने वाले, संपत्ति तथा मिथ्या प्रतिष्ठा से मोहग्रस्त लोग किसी विधि-विधान का पालन न करते हुए कभी-कभी नाममात्र के लिए बड़े ही गर्व के साथ यज्ञ करते हैं।

हे कुन्तीपुत्र, मिथ्या अहंकार, बल, दर्प, काम तथा क्रोध से मोहित होकर आसुरी व्यक्ति अपने शरीर में स्थित भगवान से ईर्ष्या और वास्तविक धर्म की निंदा करने लगते हैं। हे महाबाहो,  जो लोग ईर्ष्यालु तथा क्रूर हैं और नराधम है, उन्हें मै निरंतर विभिन्न आसुरी योनियों में, भवसागर में डालता रहता हूँ।

 

हे कुन्तीपुत्र, ऐसे व्यक्ति आसुरी योनि में बारम्बार जन्म ग्रहण करते हुए कभी भी मुझ तक पहुँच पाते, वे धीरे-धीरे अत्यन्त अधम गति को प्राप्त होते हैं। हे अर्जुन, इस नरक के तीन द्वार हैं – काम, क्रोध तथा लोभ, प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि इन्हें त्याग दें, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है।

हे कुन्तीपुत्र, जो व्यक्ति इन तीनों नरक द्वारों से बच जाता है, वह आत्म-साक्षात्कार के लिए कल्याणकारी कार्य करता है और इस प्रकार क्रमशः परम गति को प्राप्त होता है। हे धनञ्जय, जो शास्त्रों के आदेशों की अवहेलना करता है और मनमाने ढंग से कार्य करता है, उसे न तो सिद्धि, न सुख, न ही परमगति की प्राप्ति हो पाती है।

हे अर्जुन, अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के विधान अनुसार क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है, उसे ऐसे विधि-विधानों को जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, गीता अध्याय-१७ के साथ, तब तक के लिए,

जय श्री कृष्णा

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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