गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita

दोस्तों, गीता अध्याय-१३ क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग के अंत में श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था कि हे भरतपुत्र, जिस प्रकार सूर्य अकेले इस सारे ब्राह्मण को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार शरीर के भीतर स्थित एक आत्मा सारे शरीर को चेतना से प्रकाशित करता है। जो लोग ज्ञान के चक्षुओं से शरीर तथा शरीर के ज्ञाता के अन्तर को देखते हैं और भव-बंधन से मुक्ति की विधि को भी जानते हैं, उन्हें परम लक्ष्य प्राप्त होता है इससे आगे गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से क्या कहते है ? आइये जानते हैं इस आर्टिकल के माध्यम से…..

गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita

भगवानुवाच

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१ 

परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुक्तमम्‌।

यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः।।

भावार्थ 

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे अर्जुन, अब मै तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूंगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=२ 

इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः। 

सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च।। 

भावार्थ 

हे पार्थ, इस ज्ञान में स्थित होकर मनुष्य मेरी जैसी दिव्य प्रकृति (स्वभाव) को प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार स्थित हो जाने पर वह न तो सृष्टि के समय उत्पन्न होता है और न प्रलय के समय विचलित होता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=३ 

मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन्गर्भ गाधाम्यहम्‌। 

सम्भवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत।। 

भावार्थ 

हे भरतपुत्र, ब्रह्म नामक समग्र भौतिक वस्तु जन्म का स्रोत है और मै इसी ब्रह्म को गर्भस्य करता हूँ, जिससे समस्त जीवों का जन्म सम्भव होता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=४

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः। 

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता।। 

  भावार्थ 

हे कुन्तीपुत्र, तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव है और मै उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=५ 

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः। 

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम्‌।।   

भावार्थ 

हे धनञ्जय, भौतिक प्रकृति तीन गुणों है, और ये गुण हैं – सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। हे महाबाहो अर्जुन, जब शाश्वत जीव प्रकृति में संसर्ग में आता है, तो वह इन गुणों से बँध जाता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=६

तत्र सत्त्वं निर्मलत्वात्प्रकाशकमनामयम्‌। 

सुखसङ्गेन बध्नाति ज्ञानसङ्गेन चानघ।। 

  भावार्थ 

हे निष्पाप, सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण प्रकाश प्रदान करने वाला और मनुष्यों के सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है, जो लोग इस गुण में स्थित होते हैं, वे सुख तथा ज्ञान के भाव से बँध जाते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=७  

रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङगसमुद्भवम। 

तन्निबध्नाती कौन्तेय कर्मसङ्गेन देहिनम्‌।। 

भावार्थ हे 

  हे कुन्तीपुत्र, रजोगुण की उत्पत्ति असीम आकांक्षाओं तथा तृष्णाओं से होती है और इसी के कारण से यह देहधारी जीव सकाम कर्मों से बँध जाता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=८  

तमस्त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्‌। 

प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।। 

भावार्थ 

हे भरतपुत्र, तुम जान लो कि अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है, इस गुण के प्रतिफल पागलपन (प्रमाद), आलस और नींद है, जो बद्धजीव को बाँधते हैं

गीता अध्याय-१४ श्लोक=९ 

सत्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत। 

ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जययुक्त।। 

भावार्थ 

 हे भरतपुत्र, सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है, रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढककर उसे पागलपन से बाँधता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१०  

रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत। 

रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।। 

भावार्थ 

हे भरतपुत्र, कभी-कभी सतोगुण रजोगुण तथा तमोगुण को परास्त करके प्रधान बन जाता है तो कभी रजोगुण सतोगुण तथा तमोगुण को परास्त कर देता है और कभी ऐसा होता है कि तमोगुण सतोगुण और रजोगुणों को परास्त कर देता है, इस प्रकार श्रेष्ठता के लिए निरंतर स्पर्धा चलती रहती है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=११

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्प्रकाश उपजायते।

ज्ञानं यदा तदा विद्याद्विविद्धं सत्त्वमित्युत।। 

भावार्थ 

हे अर्जुन, सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१२  

लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा। 

रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।। 

भावार्थ 

हे भारतवंशियों में प्रमुख, जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आशक्ति, सकाम कर्म, गहम उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१३ 

अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च। 

तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन।। 

भावार्थ 

हे पार्थ, जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र, अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१४  

यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्‌। 

तदोत्तमविदां लोकानमलाम्प्रतिपद्यते।। 

भावार्थ 

हे धनञ्जय, जब कोई सतोगुण में मरता है, तो उसे महर्षियों के विशुद्ध उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है।

अध्याय-१४ श्लोक=१५  

रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायसे। 

तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते।। 

भावार्थ 

हे अर्जुन, जब कोई रजोगुण में मरता है, तो वह सकाम कर्मियों के बीच में जन्म ग्रहण करता है और जब कोई तमोगुण में मरता है, तो वह पशुयोनि में जन्म धारण करता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१६  

कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्विकं निर्मलं फलम्‌। 

रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌।। 

भावार्थ 

हे पार्थ, पुण्यकर्म का फल शुद्ध होता है और सात्विक कहलाता है, लेकिन रजोगुण में संपन्न कर्म का फल दुख होता है और तमोगुण में किये गए कर्म मूर्खता में प्रतिफलित होते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१७  

सत्त्वात्सञ्जायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च। 

प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च।।

भावार्थ 

हे कुन्तीपुत्र, सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१८

उर्ध्व गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः। 

जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।। 

  भावार्थ 

हे अर्जुन, सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं, रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं, और जो अत्यन्त गर्हित तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक लोकों को जाते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=१९  

नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टानुपश्यति। 

गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति।। 

भावार्थ 

 हे धनञ्जय, जब कोई यह अच्छी तरह जान लेता है कि समस्त कार्यों में प्रकृति के तीनो गुणों के अतिरिक्त अन्य कोई कर्ता नहीं है और जब वह परमेश्वर को जान लेता है, जो इन तीनों गुणों से परे है, तो वह दिव्य स्वभाव को प्राप्त होता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=२० 

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्‌। 

जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते।। 

भावार्थ 

हे महाबाहो, जब देहधारी जीव भौतिक शरीर से सम्बद्ध इन तीनों गुणों को लाँघने में समर्थ होता है, तो वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा तथा उनके कष्टों से मुक्त हो सकता है और इसी जीवन में अमृत का भोग कर सकता है।

अर्जुन उवाच

गीता अध्याय-१४ श्लोक=२१   

कैर्लिङ्गैस्त्रीन्गुणानेतानतीतो भवति प्रभो। 

किमाचारः कथं चैतांस्त्रीन्गुणानतिवर्तते।। 

भावार्थ 

अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि – हे भगवान, जो इन तीनों गुणों से परे है, वह किन लक्षणों के द्वारा जाना जाता है ? उसका आचरण कैसा होता है ? और वह प्रकृति के गुणों को किस प्रकार लाँघता है ?

श्री भगवानुवाच

गीता अध्याय-२२-२३-२४-२५-

प्रकाशं च प्रवृत्तिं च मोहमेव च पाण्डव। 

न द्वेष्टि सम्प्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्‍क्षति।।

उदासीनवदासीनो गुणैर्यो न विचाल्यते। 

गुणा वर्तन्त इत्वेवं योऽवतिष्ठति नेङ्गते।। 

समदुःखसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चनः। 

तुल्यप्रियाप्रियो धीरस्तुल्यनिन्दात्मसंस्तुतिः।। 

मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयोः। 

सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीतः स उच्यते।। 

भावार्थ 

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे कुन्तीपुत्र, जो प्रकाश, आशक्ति तथा मोह के उपस्थित होने पर न तो उनसे घृणा करता है और न लुप्त हो जाने पर उनकी इच्छा करता है, जो भौतिक गुणों की इन समस्त प्रतिक्रियाओं से निश्चल तथा अविचलित रहता है और यह जानकर कि केवल गुण ही क्रियाशील है, उदासीन तथा दिव्य बना रहता है।

जो अपने आपमें स्थित है और सुख तथा दुःख को एक समान मानता है, जो मिट्टी के ढेले, पत्थर एवं स्वर्ण के टुकड़े को समान दृष्टि से देखता है, जो अनुकूल तथा प्रतिकूल के प्रति समान बना रहता है, जो धीर है और प्रशंसा तथा बुराई, मान तथा अपमान में समान भाव से रहता है। जो शत्रु तथा मित्र के साथ समान व्यवहार करता है और जिसने सारे भौतिक कार्यों का परित्याग कर दिया है, ऐसे व्यक्ति को प्रकृति के गुणों से अतीत कहते हैं।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=२६

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते। 

स गुणान्समतीत्यैतांब्रह्मभूयाय कल्पते।।  

भावार्थ 

हे धनञ्जय, जो समस्त परिस्थितियों में अविचलित भाव से पूर्ण भक्ति में प्रवृत्त होता है, वह तुरंत ही प्रकृति के गुणों को लाँघ जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर तक पहुँच जाता है।

गीता अध्याय-१४ श्लोक=२७ 

ब्राह्मणो हि प्रतिष्ठाहममृतस्याव्ययस्य च। 

शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च।।  

भावार्थ 

हे अर्जुन, और मै ही उस निराकार ब्रह्म का आश्रय हूँ, जो अमर्त्य, अविनाशी तथा शाश्वत है और चरम सुख का स्वाभाविक पद है।

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायांयोगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे गुण त्रय विभाग योगो नाम चतुर्दशोऽध्यायः समाप्त॥

इस प्रकार उपनिषद, ब्रह्मविद्या तथा योगशास्त्र रूप श्रीमद्भगवद्गीता के श्री कृष्ण-अर्जुन संवाद में  गुण त्रय विभाग योग नाम का चौदहवाँ अध्याय सम्पूर्ण हुआ।

।। हरिः ॐ तत् सत्।।

गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita

सारांश

दोस्तों, गीता अध्याय-१४ को गुण त्रय विभाग योग के नाम से जाना जाता है, इस अध्याय में सभी प्रकार के वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्व चिंतन के बारे में बताया गया है, जिसमे सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण और उनके प्रभावों के बारे में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को क्या और कैसे बताया है, आइये जानते है…..

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे अर्जुन, अब मै तुमसे समस्त ज्ञानों में सर्वश्रेष्ठ इस परम ज्ञान को पुनः कहूंगा, जिसे जान लेने पर समस्त मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की है। हे पार्थ, इस ज्ञान में स्थित होकर मनुष्य मेरी जैसी दिव्य प्रकृति (स्वभाव) को प्राप्त कर सकता है, इस प्रकार स्थित हो जाने पर वह न तो सृष्टि के समय उत्पन्न होता है और न प्रलय के समय विचलित होता है।

हे भरतपुत्र, ब्रह्म नामक समग्र भौतिक वस्तु जन्म का स्रोत है और मै इसी ब्रह्म को गर्भस्य करता हूँ, जिससे समस्त जीवों का जन्म सम्भव होता है। हे कुन्तीपुत्र, तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव है और मै उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ। हे धनञ्जय, भौतिक प्रकृति तीन गुणों है, और ये गुण हैं – सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण। हे महाबाहो अर्जुन, जब शाश्वत जीव प्रकृति में संसर्ग में आता है, तो वह इन गुणों से बँध जाता है।

हे निष्पाप, सतोगुण अन्य गुणों की अपेक्षा अधिक शुद्ध होने के कारण प्रकाश प्रदान करने वाला और मनुष्यों के सारे पाप कर्मों से मुक्त करने वाला है, जो लोग इस गुण में स्थित होते हैं, वे सुख तथा ज्ञान के भाव से बँध जाते हैं। हे कुन्तीपुत्र, रजोगुण की उत्पत्ति असीम आकांक्षाओं तथा तृष्णाओं से होती है और इसी के कारण से यह देहधारी जीव सकाम कर्मों से बँध जाता है।

हे भरतपुत्र, तुम जान लो कि अज्ञान से उत्पन्न तमोगुण समस्त देहधारी जीवों का मोह है, इस गुण के प्रतिफल पागलपन (प्रमाद), आलस और नींद है, जो बद्धजीव को बाँधते हैं हे भरतपुत्र, सतोगुण मनुष्य को सुख से बाँधता है, रजोगुण सकाम कर्म से बाँधता है और तमोगुण मनुष्य के ज्ञान को ढककर उसे पागलपन से बाँधता है।

हे भरतपुत्र, कभी-कभी सतोगुण रजोगुण तथा तमोगुण को परास्त करके प्रधान बन जाता है तो कभी रजोगुण सतोगुण तथा तमोगुण को परास्त कर देता है और कभी ऐसा होता है कि तमोगुण सतोगुण और रजोगुणों को परास्त कर देता है, इस प्रकार श्रेष्ठता के लिए निरंतर स्पर्धा चलती रहती है।

हे अर्जुन, सतोगुण की अभिव्यक्ति को तभी अनुभव किया जा सकता है, जब शरीर के सारे द्वार ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। हे भारतवंशियों में प्रमुख, जब रजोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो अत्यधिक आशक्ति, सकाम कर्म, गहम उद्यम तथा अनियंत्रित इच्छा एवं लालसा के लक्षण प्रकट होते हैं। हे पार्थ, जब तमोगुण में वृद्धि हो जाती है, तो हे कुरुपुत्र, अँधेरा, जड़ता, प्रमत्तता तथा मोह का प्राकट्य होता है। हे धनञ्जय, जब कोई सतोगुण में मरता है, तो उसे महर्षियों के विशुद्ध उच्चतर लोकों की प्राप्ति होती है।

हे अर्जुन, जब कोई रजोगुण में मरता है, तो वह सकाम कर्मियों के बीच में जन्म ग्रहण करता है और जब कोई तमोगुण में मरता है, तो वह पशुयोनि में जन्म धारण करता है। हे पार्थ, पुण्यकर्म का फल शुद्ध होता है और सात्विक कहलाता है, लेकिन रजोगुण में संपन्न कर्म का फल दुख होता है और तमोगुण में किये गए कर्म मूर्खता में प्रतिफलित होते हैं।

हे कुन्तीपुत्र, सतोगुण से वास्तविक ज्ञान उत्पन्न होता है, रजोगुण से लोभ उत्पन्न होता है और तमोगुण से अज्ञान, प्रमाद और मोह उत्पन्न होते हैं। हे अर्जुन, सतोगुणी व्यक्ति क्रमशः उच्च लोकों को ऊपर जाते हैं, रजोगुणी इसी पृथ्वीलोक में रह जाते हैं, और जो अत्यन्त गर्हित तमोगुण में स्थित हैं, वे नीचे नरक लोकों को जाते हैं।

 हे धनञ्जय, जब कोई यह अच्छी तरह जान लेता है कि समस्त कार्यों में प्रकृति के तीनो गुणों के अतिरिक्त अन्य कोई कर्ता नहीं है और जब वह परमेश्वर को जान लेता है, जो इन तीनों गुणों से परे है, तो वह दिव्य स्वभाव को प्राप्त होता है। हे महाबाहो, जब देहधारी जीव भौतिक शरीर से सम्बद्ध इन तीनों गुणों को लाँघने में समर्थ होता है, तो वह जन्म, मृत्यु, बुढ़ापा तथा उनके कष्टों से मुक्त हो सकता है और इसी जीवन में अमृत का भोग कर सकता है।

अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि – हे भगवान, जो इन तीनों गुणों से परे है, वह किन लक्षणों के द्वारा जाना जाता है ? उसका आचरण कैसा होता है ? और वह प्रकृति के गुणों को किस प्रकार लाँघता है ?

भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – हे कुन्तीपुत्र, जो प्रकाश, आशक्ति तथा मोह के उपस्थित होने पर न तो उनसे घृणा करता है और न लुप्त हो जाने पर उनकी इच्छा करता है, जो भौतिक गुणों की इन समस्त प्रतिक्रियाओं से निश्चल तथा अविचलित रहता है और यह जानकर कि केवल गुण ही क्रियाशील है, उदासीन तथा दिव्य बना रहता है।

जो अपने आपमें स्थित है और सुख तथा दुःख को एक समान मानता है, जो मिट्टी के ढेले, पत्थर एवं स्वर्ण के टुकड़े को समान दृष्टि से देखता है, जो अनुकूल तथा प्रतिकूल के प्रति समान बना रहता है, जो धीर है और प्रशंसा तथा बुराई, मान तथा अपमान में समान भाव से रहता है। जो शत्रु तथा मित्र के साथ समान व्यवहार करता है और जिसने सारे भौतिक कार्यों का परित्याग कर दिया है, ऐसे व्यक्ति को प्रकृति के गुणों से अतीत कहते हैं।

हे धनञ्जय, जो समस्त परिस्थितियों में अविचलित भाव से पूर्ण भक्ति में प्रवृत्त होता है, वह तुरंत ही प्रकृति के गुणों को लाँघ जाता है और इस प्रकार ब्रह्म के स्तर तक पहुँच जाता है। हे अर्जुन, और मै ही उस निराकार ब्रह्म का आश्रय हूँ, जो अमर्त्य, अविनाशी तथा शाश्वत है और चरम सुख का स्वाभाविक पद है।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, गीता अध्याय-१५ (पुरुषोत्तम योग) के साथ, तब तक के लिए,         जय श्री कृष्णा

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म

Website : www.motivemantra.com इस पर Motivational Article Publish होते हैं।

Youtube Channel (1) Motive Mantra by amit dubey इस पर Motivational Video Publish होते हैं।

Youtube Channel (2) : Knowledge Facts by amit dubey इस पर General Knowledge Video Publish होते हैं।

इन्हें भी तो पढ़ें

What Is SEO | 25 SEO Tips In Hindi

नरेंद्र मोदी ने अपनी पत्नी को क्यों छोड़ा था

रतन टाटा की जीवनी | Ratan Tata Biography In Hindi

चीन का नकली सूरज कैसा है ? | चीन ने बनाया कृत्रिम सूरज

ममता बनर्जी की जीवनी | Mamta Banerjee Biography In Hindi

हमारा यूट्यूब चैनल : Motive Mantra By Amit Dubey

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *