वामन अवतार (भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार)
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वामन अवतार भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार होता है, जिसमें वे पहली बार पृथ्वी पर पूर्ण मनुष्य अवतार में जन्म लेते हैं, इस अवतार में भगवान ने दैत्यराज बलि का सबसे बड़ा दानवीर होने का घमंड तोड़ा था, अब आखिर कौंन है दैत्यराज बलि और क्या है उसके दानी होने की कहानी, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > वामन अवतार (भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार)

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वामन अवतार (भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार) Image Source : Svastika
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वामन अवतार (भगवान विष्णु का पाँचवाँ अवतार)

गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।। (7)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)

भावार्थ

हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।

हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।

भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।

अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का, और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का, तथा तीसरा अवतार वराह अर्थात मनुष्य+सुकर का उसके बाद चौथा अवतार नरसिंह अर्थात मनुष्य+शेर का लिया था जिसके बारे में हमने इससे पहले के आर्टिकल में आपको बताया है, इसके बाद भगवान पृथ्वी की रक्षा के लिए अपना पाँचवाँ अवतार वामन अवतार लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार वामन अवतार के बारे में….

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भगवान विष्णु ने वामन अवतार क्यों लिया ?

Image Source : Pinterest
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 यह त्रेतायुग की बात है, जब विष्णु भक्त प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्ग पर आक्रमण कर देवराज इंद्र को पराजित करके स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था, और इतना ही नहीं वह अपनी शक्तियों के बल पर स्वर्ग-लोक, भू-लोक और पाताल-लोक का स्वामी बन बैठा था।

वैसे दैत्यराज बलि उस समय का सबसे दानवीर व्यक्ति था लेकिन उसे अपने इस दानी प्रवृत्ति का बड़ा घमंड भी था, और उसी घमंड में चूर होकर वह अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करने लगा था, और देवताओं तथा ब्राह्मणों को डराता-धमकाता रहता था।

दैत्यराज बलि द्वारा स्वर्ग पर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेने के बाद समस्त देवतागण भगवान विष्णु के शरण में जाते हैं और अपनी व्यथा उन्हें सुनाते हैं, तब भगवान विष्णु देवताओं को अस्वासन देते हैं कि दैत्यराज बलि के घमंड को चूर करने और उससे स्वर्ग-लोक वापिस लेकर देवराज इन्द्र को दिलाने के लिए वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे।

 उसके बाद भगवान विष्णु ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजीत मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में ऋषि कश्यप के घर में उनकी पत्नी अदिति के गर्भ से पृथ्वी पर अपना पाँचवाँ अवतार वामन अवतार लिया, जिसमें वे एक छोटे से कद के भिच्छुक ब्राह्मण बनकर आते हैं।

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दानवीर दैत्यराज बलि कौन था ?

Image Source : Khabribox
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दैत्यराज दानवीर बलि का परिचय हम कुछ इस तरह से देना चाहेंगे ताकि आप उनके बारे में भली-भाँति जान और समझ सकें, सतयुग के समय के दो सबसे शक्तिशाली राक्षस हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु थे, हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी माता का अपहरण करके उन्हें समुद्र की गहराई में ले जाकर छुपा दिया था तब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर उसका वध किया था और माता पृथ्वी को हिरण्याक्ष के चंगुल से छुड़ाया था।

उसी हिरण्याक्ष का बड़ा भाई हिरण्यकशिपु था, हिरण्यकशिपु के पुत्र विष्णु भक्त प्रह्लाद थे, प्रह्लाद के पुत्र विरोचन और विरोचन के पुत्र राजा बलि थे, जो कि उस समय के दैत्यों के सबसे शक्तिशाली राजा थे, राजा बलि शक्तिशाली होने के साथ-साथ एक न्यायप्रिय और दानवीर व्यक्ति भी थे।

राजा बलि को अपने शक्तियों और दानवीरता पर बहुत घमंड था, हालाँकि वे उतने बुरे दैत्य नहीं थे जितने कि उनके परदादा हिरण्यकशिपु थे, वे एक न्यायप्रिय राजा थे, लेकिन दैत्यगुरु शुक्राचार्य के प्रभाव ने उन्हें देवता विरोधी बना दिया था और वैसे भी आखिरकार वे राक्षस ही तो थे कितने भी अच्छे होंगे लेकिन देवता विरोधी मानसिकता से परे नहीं हो सकते थे।

राजा बलि के दादा प्रह्लाद विष्णु भगवान के परम भक्त थे, और वे चाहते थे कि उनकी अगली पीढ़ी भी वैसी ही हो, लेकिन दैत्यगुरु शुक्राचार्य जो कि उनके राजगुरु भी थे, वे देवताओं से अति घृणा करते थे, और इसीलिए वे अपने समय के शक्तिशाली दैत्यों को देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली बनाने में और उन्हें देवताओं के विरुद्ध भड़काने का काम करते रहते थे।

राजा बलि को भी दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने ही शिक्षा दी थी और शक्तिशाली दैत्य बनाया था जिसकी बदौलत ही वे स्वर्ग पर आक्रमण करके देवराज इन्द्र से स्वर्ग का सिंहासन छीन लिया था, और उसी स्वर्ग के सिंहासन को देवराज इन्द्र को वापिस दिलाने और राजा बलि के घमंड को तोड़ने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और भिच्छुक बनकर राजा बलि से दान में तीन पग धरती की मांग की और पहले पग में पृथ्वी, दूसरे पग में स्वर्ग को नाप लिया, और जब तीसरे पग की बारी आयी तो राजा बलि ने अपना वचन पूरा करते हुए अपना सिर भगवान विष्णु के सामने झुका दिया और बोले कि हे भगवन अब आप मेरे सिर पर अपना पांव रखकर मुझे धन्य करें।

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भगवान विष्णु ने राजा बलि के साथ क्या किया ?

Image Source : MyPandit

जैसा कि हमने पहले ही आपको बताया कि राजा बलि एक शक्तिशाली राजा तो थे ही लेकिन उससे भी ज्यादा वे एक दानवीर राजा के रूप में जाने जाते थे, और भगवान विष्णु यह भली-भाँति जानते थे, तभी तो उन्होंने राजा बलि से स्वर्ग को वापिस लेने के लिए शक्ति का नहीं बल्कि विवेक से काम लिया।

अगर भगवान विष्णु चाहते तो अन्य कोई भी उग्र अवतार लेकर राजा बलि का संहार करके स्वर्ग-लोक को वापिस देवराज इन्द्र को दिला सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ  भी नहीं किया, यहाँ पर भगवान विष्णु ने जगत को एक संदेश भी देना चाहा है कि जब काम झुक कर माँगने से हो सकता है तो फिर युद्ध करने की भला क्या आवश्यकता है।

राजा बलि के यज्ञ करने के दौरान भगवान विष्णु अपने पाँचवें अवतार अर्थात वामन अवतार में उनके पास एक बटुक ब्राह्मण बनकर पहुँचते हैं और उनसे भिक्षा माँगते हैं, जिस पर राजा बलि ने उनसे कहा कि हे ब्राह्मणश्रेष्ठ आपको जो भी चाहिए आप आदेश करें, इस पर ब्राह्मण बालक ने उनसे तीन पग धरती की माँग की जिस पर राजा बलि ने उनकी चुटकी भी ली कि हे ब्राह्मणश्रेष्ठ सिर्फ तीन पग भूमि माँगकर आप राजा बलि की उपेक्षा ना करें इससे अधिक और कुछ मांगें, आप जो भी माँगेंगे हम आपको देंगे।

हालाँकि दैत्यगुरु शुक्राचार्य यह जान चुके थे कि ये ब्राह्मण बालक कोई और नहीं बल्कि साक्षात् नारायण अर्थात भगवान विष्णु हैं, और दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने राजा बलि को इस बारे में चेताना भी चाहा, लेकिन राजा बलि ने उनकी एक ना सुनी और उस ब्राह्मण बालक को तीन पग भूमि दान में देने का वचन दे दिया।

और जैसे ही राजा बलि ने कहा कि हे ब्राह्मणश्रेष्ठ आप अपने पग से अपने लिए दान स्वरुप तीन पग भूमि नाप लें वामन देव ने अपना आकार बढ़ाया और ही पहले पग में पूरा पृथ्वी और दूसरे पग में पूरा आकाश नाप लिया, और यह देखकर राजा बलि समझ गए कि यह ब्राह्मण बालक कोई साधारण मनुष्य नहीं बल्कि स्वयं नारायण हैं, और राजा बलि उनके सामने नत-मस्तक हो जाते हैं और कहते हैं कि हे प्रभु अब आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रखकर मुझे कृतार्थ करने की कृपा करें।

और जैसे ही राजा बलि ने अपना सिर उनके सामने झुकाया वामन देवता ने अपना पांव उनके सिर पर रखा और उन्हें पाताल-लोक में भेज दिया, साथ ही साथ उनके इस दानवीर प्रवृत्ति से खुश होकर उन्हें पाताल-लोक का राजा बना दिया। क्योंकि राजा बलि ने अपना वचन निभाने में किसी भी प्रकार की कोई भी कमी नहीं की थी।

हालाँकि गुरु शुक्राचार्य द्वारा शंका सिद्ध करने के समय ही वे यह जान चुके थे कि यह ब्राह्मण बालक कोई साधारण बालक नहीं है, अगर वे चाहते तो वचन देने से आनाकानी भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और वचन भी दिया और उसे निभाया भी, यह सब देखकर भगवान विष्णु उनसे बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल-लोक का राजा बना दिया।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा..जय श्री कृष्णा।

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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