कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार)
Share this article

भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्य अवतार था, जिसमें भगवान ने मछली का रूप लेकर उस समय के एक बड़े दैत्य हयग्रीव का वध करके चारों वेदों की रक्षा की थी साथ ही साथ पृथ्वी को जल प्रलय से भी बचाया था, इसके बाद भगवान ने अपना दूसरा अवतार कछुए के रूप में लिया लेकिन क्यूँ…..? इसी के बारे में हमने इस आर्टिकल में बताया है, तो आइये अब शुरू करते हैं > कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार)

गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।। (7)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)

Contents hide
3 कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार)
3.7 हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म

भावार्थ

हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।

हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।

भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।

अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का लिया था और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के दूसरे अवतार अर्थात कूर्म अवतार के बारे में…..

यह भी पढ़ें > मत्स्य अवतार (भगवान विष्णु का पहला अवतार)

कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार) Image source : Hindu Mythology
कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार) Image source : Hindu Mythology

कूर्म अवतार (भगवान विष्णु का दूसरा अवतार)

भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार क्यों लिया ?

 Kurma Avatar | ACRYLIC ON CANVAS | Square | RA-198-379080 | Dirums.com

Kurma Avatar | ACRYLIC ON CANVAS | Square | RA-198-379080 | Dirums.com

भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को (कच्छप या फिर कछुआ अवतार) भी कहा जाता है, नरसिंह पुराण के अनुसार कूर्म अवतार को भगवान विष्णु का दूसरा अवतार माना जाता है, जबकि भागवत पुराण के अनुसार ग्यारहवाँ अवतार माना जाता है।

 यह अवतार भगवान विष्णु ने तब लिया था जब क्षीर सागर में समुद्र मंथन होना था,  उस समय जब मंदराचल पर्वत को वासुकी नाग द्वारा रस्सी बनाकर समुद्र के अंदर मंथन करके अमृत को प्राप्त करना था लेकिन वह कार्य इसलिए संभव नहीं हो पा रहा था क्योंकि मंदराचल पर्वत को मन्थने के लिए समुद्र के अंदर पर्वत को एक बेस की जरुरत थी ताकि उस पर रखकर मंथन के कार्य को किया जा सके।

देवता और असुर दोनों ही पक्ष हैरान थे कि आखिर समुद्र मंथन कैसे संभव पाए क्योंकि पर्वत के नीचे कोई बेस न हो पाने की वजह से वह समुद्र में टिक नहीं पा रहा था और नीचे की तरफ डूबता जा रहा था, यह सब भगवान विष्णु देख रहे थे, और समझ भी रहे थे कि बिना मेरे सहयोग के ये कार्य संभव नहीं हो पायेगा, तब जाकर उन्होंने कछुए का रूप धारण किया और समुद्र में जाकर मंदराचल पर्वत के नीचे 1000 योजन के बहुत बड़े आकार में खुद को बेस बनाकर पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लिया।

और जैसे ही भगवान विष्णु ने कछुए के रूप में मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ का सहारा दिया पर्वत को बेस मिल गया और वह एक स्थान पर स्थिर हो गया जिससे समुद्र मंथन संभव हो पाया और वासुकी नाग द्वारा मंथन का कार्य पूरा किया गया, जिसमें अमृत तो निकला ही साथ ही साथ अमृत सहित कुल चौदह रत्न भी निकले जिनके नाम निम्नलिखित हैं।

समुद्र मंथन से प्राप्त हुए कुल चौदह रत्नों के नाम

1. हलाहल विष

2. कामधेनु गाय

3. उच्चैः श्रवा घोड़ा

4. ऐरावत हाथी

5. कौस्तुभ मणि

6. कल्पवृक्ष

7. अप्सरा रम्भा

8. माता लक्ष्मी

9. वारुणी

10. चन्द्रमा

11. पांचजन्य शंख

12. पारिजात वृक्ष

13. शारंग धनुष

14. अमृत कलश

यह भी पढ़ें > विष्णु पुराण का इतिहास उत्पत्ति और रहस्य

समुद्र मंथन की आवश्यकता क्यों पड़ी ?

Kurma (Tortoise) Avatar of Lord Vishnu & Saturn - Cosmic Insights
Kurma (Tortoise) Avatar of Lord Vishnu & Saturn – Cosmic Insights

एक समय की बात है जब ऋषि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र से प्रसन्न होकर उन्हें परिजात पुष्प की माला उपहार स्वरुप भेंट की, और देवराज इन्द्र ने वह माला खुद न धारण करके अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया और ऐरावत ने वह माला भूमि पर फेंक दिया, यह सब देखकर ऋषि दुर्वासा को बहुत क्रोध आया जिस कारण उन्होंने देवराज इन्द्र सहित सभी देवताओं को श्राप दे दिया जिससे उनकी शक्तियाँ क्षीण हो गई और देवतागण शक्तिहीन हो गये।

इस घटना ने देवताओं की चिंता काफी बढ़ा दी और वे इसके समाधान के लिए ब्रह्मा जी के शरण में गये, ब्रह्मा जी ने समस्त देवताओं को सुझाव दिया कि इस समस्या का निवारण तो श्री हरी नारायण अर्थात भगवान विष्णु ही बता सकते हैं, फिर सभी देवतागण अपनी समस्या को लेकर क्षीर सागर भगवान विष्णु के पास पहुँचते हैं और उन्हें सारी बात बताते हैं।

देवताओं की समस्या को सुनने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें क्षीर सागर में समुद्र मंथन करने की सलाह दी, और यह बताया कि समुद्र मंथन के उपरांत अमृत की प्राप्ति होगी जिसको पीकर देवता लोग हमेशा के लिए अमर हो जायेंगे साथ ही उनकी खोई हुई शक्तियाँ भी वापिस आ जाएँगी, लेकिन इसमें एक समस्या यह थी कि देवतागण अकेले यह कार्य नहीं कर सकते थे, इस कार्य को करने के लिए देवता और असुर दोनों ही पक्ष मिलकर काम करेंगे तभी संभव हो पायेगा।

देवराज इन्द्र असुरों से इसके लिए बात करते हैं, पहले तो असुर और उनके गुरु शुक्राचार्य नहीं मानते हैं लेकिन अमृत प्राप्ति के लालच में वे समुद्र मंथन में देवताओं का साथ देने के लिए मान जाते हैं, उसके बाद भगवान विष्णु के आदेश पर पक्षीराज गरुण और सुदर्शन चक्र मंदार पर्वत को काटकर सागर के मध्य ले जाते हैं और नागराज वासुकी को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन शुरू हो जाता है, लेकिन मंदार पर्वत के नीचे कोई बेस न होने की वजह से वह डूबने को आतुर हो जाता है, जिसको देखकर भगवान विष्णु  कछुए का रूप धारण करके मंदार पर्वत को बेस देते हुये अपनी पीठ पर उठा लेते हैं, और समुद्र मंथन होना शुरू हो जाता है।

समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले जल का हलाहल अर्थात विष निकला, जिसकी ज्वाला इतनी तीव्र थी कि सभी देवता और असुर और समस्त पृथ्वीवासी उसके प्रभाव से जलने लगे, यह देख असुर भाग खड़े हुये और दैत्यगुरु शुक्राचार्य के पास वापिस चले गये, और देवतागण भगवान शिव के शरण में पहुँचे और उनसे प्रार्थना की कि इस विष की कहर से वे उन्हें बचायें।

देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उस विष को अपने मुंह में भर लिया लेकिन उसे पेट तक नहीं जाने दिया बल्कि अपने कंठ में ही रोक लिया जिसकी गर्मी से उनका कंठ नीला पड़ गया, भगवान शिव की इस महिमा को देख भगवान विष्णु ने उनका हार्दिक धन्यवाद किया साथ में उन्हें नीलकंठ का नाम भी दिया और तभी से भगवान शिव का नाम नीलकंठ भी पड़ गया।

यह भी पढ़ें > भगवान विष्णु के 10 अवतार और उनकी कहानियाँ

समुद्र मंथन में अमृत निकलने के बाद क्या हुआ ?

Jegarupan vathumalai - Kurma Avatar
Jegarupan vathumalai – Kurma Avatar

समुद्र मंथन में कुल चौदह रत्न निकले जिनके नाम हमने पहले ही आपको बताया, जिसमें सबसे अंत में अमृत कलश निकला, जिसको देखकर देवता और असुर पहले मै-पहले मै पियूँगा को लेकर झगड़ने लगे, इस झगड़े को देखकर भगवान विष्णु मोहिनी का रूप धारण करके वहाँ उपस्थित हुये और दोनों पक्षों को शांत कराकर अमृत वितरण का कार्य करने लगे।

भगवान विष्णु पहले देवताओं को अमृत पान कराने लगे यह देख असुरों का एक साथी राहु देवताओं की कतार में भेष बदलकर खड़ा हो गया और छल से उसने भी अमृत पान कर लिया, जिसे देख भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर अपने चक्र से उसका सिर काट दिया, और तभी से उस असुर शरीर के दोनों हिस्सों को राहु और केतु के नाम से जाना जाने लगा।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द – जय भारत

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म

Website : www.motivemantra.com इस पर Motivational Article Publish होते हैं।

Youtube Channel (1) Motive Mantra by amit dubey इस पर Motivational Video Publish होते हैं।

Youtube Channel (2) : Knowledge Facts by amit dubey इस पर General Knowledge Video Publish होते हैं।

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१ अर्जुन विषाद योग (कुरुक्षेत्र में युद्ध की तैयारी)

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-२ सांख्य योग (अर्जुन के भ्रम का विश्लेषण)

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-३ कर्म योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-४ ज्ञान-कर्म-सन्यास-योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-५ कर्म-सन्यास योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-६ ध्यानयोग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-७ ज्ञान विज्ञान योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-८ अक्षर ब्रह्मं योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-९ राजगुह्य योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१० विभूति योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-११ विश्वरूप दर्शन योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१२ भक्तियोग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१३ क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१४ गुण त्रय विभाग योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१५ पुरुषोत्तम योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१६ देव असुर संपदा विभाग योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१७ श्रद्धात्रय विभाग योग || Operation Gita

यह भी पढ़ें > गीता अध्याय-१८ मोक्षसंन्यास योग || Operation Gita

हमारा यूट्यूब चैनल : Motive Mantra By Amit Dubey


Share this article

Leave a Reply

Your email address will not be published.

© Beli. All Rights Reserved.