नरसिंह अवतार (भगवान विष्णु का चौथा अवतार)
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नरसिंह अवतार भगवान विष्णु का चौथा अवतार होता है, जिसमें उनका आधा शरीर मानव का और आधा सिंह अर्थात शेर का होता है, इस अवतार में भगवान ने हिरण्यकशिपु नामक दैत्य का वध किया था, अब हिरण्यकशिपु कौन है, और क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा उसका वध करने के लिये नरसिंह अवतार, आइये इस आर्टिकल के माध्यम से भगवान नारायण के इस अवतार के बारे में गहराई से जानते हैं > नरसिंह अवतार (भगवान विष्णु का चौथा अवतार)

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नरसिंह अवतार (भगवान विष्णु का चौथा अवतार) Image Source Penterest
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नरसिंह अवतार (भगवान विष्णु का चौथा अवतार)

गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 और 8 में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि…..

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। 

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।। (7)

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (8)

भावार्थ

हे भरतवंशी, जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है तब तब मै अवतार लेता हूँ।

हे अर्जुन, भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मै हर युग में प्रकट होता हूँ।

भक्तों, गीता का यह श्लोक हालाँकि महाभारत के युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, लेकिन इससे पहले भी विष्णु भगवान ने यह श्लोक बहुत बार बोला है, विष्णु पुराण में भगवान ने कहा है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म धर्म पर हावी होने लगेगा तब-तब मै अवतार लूंगा और धर्म की रक्षा करूँगा।

अपने इसी प्रण को पूरा करने के लिए भगवान विष्णु ने पहला अवतार मत्स्य का अर्थात मछली का और दूसरा अवतार कूर्म अर्थात कछुए का तथा तीसरा अवतार वराह अर्थात (शरीर मानव का +सिर सूअरका) लिया था जिसके बारे में हमने इससे पहले के आर्टिकल में आपको बताया है, इसके बाद भगवान पृथ्वी की रक्षा के लिए अपना चौथा अवतार नरसिंह अवतार लेते हैं जिसके बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बताने जा रहे हैं, तो आइये आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भगवान विष्णु के चौथे अवतार नरसिंह अवतार के बारे में….

भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार क्यों लिया ?

Image Source : SoundCloud
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भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा के लिए तथा उसके पिता हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए नरसिंह अवतार लिया था, जिसमे वे आधे मानव और आधे शेर के रूप में खम्भे में से प्रकट हुए थे।

विष्णु भक्त प्रह्लाद के पिता हिरण्यकशिपु उस समय का सबसे बलशाली दैत्य था जिसे अपने शक्तियों पर बड़ा घमंड था, वह अपने-आप को भगवान मानता था, और भगवान विष्णु की जगह अपनी पूजा करवाने के लिए वह दूसरों को भयभीत किया करता था।

जो भी उसके इस बात को नहीं मानता था वह उसे भयंकर रूप से दण्डित करता था, लेकिन उसके इस अभियान में उसका अपना पुत्र प्रह्लाद ही उसका घोर विरोधी निकल गया था क्योंकि प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।

जब हिरण्यकशिपु प्रह्लाद को हर तरह की यातना देकर भी उसकी विष्णु भक्ति को नहीं रोक पाया तो उसने अपने पुत्र को जान से मारने की योजना बनाई, और उसने कई बार प्रह्लाद को मरवाना भी चाहा लेकिन वह सफल नहीं हो पाया, क्योंकि प्रह्लाद के जान की रक्षा तो स्वयं नारायण कर रहे थे।

हिरण्यकशिपु द्वारा प्रह्लाद को मारने की ऐसी ही एक योजना के समय ही भगवान विष्णु ने स्वयं को नरसिंह रूप में प्रकट करके खम्भे को चीरकर निकले और हिरण्यकशिपु को अपनी जांघ पर रखकर अपने नाखूनों से उसका वध किया।

प्रत्येक वर्ष के फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के द्वादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है, और इस कारण से ही इस दिन को नरसिम्हा द्वादशी के रूप में भी जाना जाता है।

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हिरण्यकशिपु कौन था ?

Image Source : NepalaYak
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दैत्यराज हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष के बड़े भाई और विष्णु भक्त प्रह्लाद के पिता थे, दैत्य गुरु शुक्राचार्य उनके राजगुरु थे। सतयुग के दो सबसे बलशाली दैत्य हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष थे, उन दोनों भाइयों ने मिलकर सृष्टि को आतंकित कर रखा था, स्वर्गलोक को उन्होने जीत लिया था, पृथ्वी पर उनका मुकाबला करने वाला कोई नहीं था।

हिरण्यकशिपु का छोटा भाई हिरण्याक्ष इतना बलशाली था कि उसने पृथ्वी को अपने हाथों से फुटबाल की तरह उठाकर ले जाकर समुद्र की अत्यंत गहराई में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने अपना तीसरा अवतार (वराह अवतार) लेकर उसका वध किया था और माता पृथ्वी को उसके चंगुल से छुड़ाकर उन्हें मुक्त कराया था, और इसी बात को लेकर उसका बड़ा भाई हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु से कुछ ज्यादा ही चिढ़ता था।

 वैसे भी भगवान विष्णु से पूरी राक्षस जाति ही चिढ़ती थी, क्योंकि वे उनके सभी अनैतिक कार्यों के विरोधी और नाश करने वाले थे, हिरण्यकशिपु उस समय का सबसे शक्तिशाली दैत्य था, वह देवताओं को पराजित कर चुका था, पृथ्वी पर कोई उसके सामने खड़ा होने वाला नहीं था, इस कारण उसे अपने शक्तियों पर बड़ा ही घमंड था,  इतना ही नहीं वह तो अपने आप को भगवान भी समझने लगा था।

अहंकार के नशे में चूर दैत्यराज हिरण्यकशिपु ने विष्णु पूजा पर रोक लगवा दी, और प्रजा को यह सन्देश दिया कि अब से लोग विष्णु की नहीं बल्कि भगवान हिरण्यकशिपु की पूजा करेंगे, और जो ऐसा नहीं करेगा उसे कड़े दंड का सामना करना पड़ेगा, राजा के इस आदेश का पालन बहुत से लोगों ने किया और बहुतों ने नहीं भी किया और वे दंडित भी हुये।

हिरण्यकशिपु के भय से, ना चाहते हुये भी लोग उसकी पूजा करने के लिये विवश थे, लेकिन उसके घर में ही उसके उस आदेश का पालन नहीं हो रहा था, क्योंकि उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, वह निरंतर भगवान का नाम (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) जप करता रहता था, और जैसे ही हिरण्यकशिपु को ये बात पता चली, वे प्रह्लाद पर अत्यंत क्रोधित हुये और भविष्य में विष्णु की आराधना न करने की चेतावनी दी।

हिरण्यकशिपु के लाख मना करने के पश्चात् भी प्रह्लाद के विष्णु आराधना में कोई कमी नहीं आई, जो हिरण्यकशिपु के लिये चिंता का विषय बन गया, क्योंकि राज दरबार का आदेश जो राजा अपने घर में ही ना लागू करा पाए वो जनता से क्या करवायेगा का सवाल तो बना ही रहेगा, अपने अहंकारी हठ को पूरा करने के लिये हिरण्यकशिपु कुछ भी कर सकता है, कुछ भी…..अर्थात कुछ भी…..क्योंकि सवाल अब नाक का बन चुका था।

हिरण्यकशिपु और दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने साथ मिलकर प्रह्लाद को रास्ते से हटाने की योजना बनाई, और वह योजना क्या थी, कैसी थी और कितनी कारगर साबित हुई ?, प्रह्लाद कौन था, प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त कैसे बने, प्रह्लाद ने अपने पिता की बात क्यों नहीं मानी, प्रह्लाद का भविष्य में क्या हुआ, आइये जानते हैं उनके जीवन के बारे में गहराई से जानते हैं।

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भक्त प्रह्लाद के विष्णुभक्ति की कहानी

Image Source : Bal-Mukund
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एक समय की बात है जब दैत्यराज हिरण्यकशिपु विजय प्राप्ति के उद्देश्य से तपस्या करने में लीन थे, अच्छा अवसर देखकर देवताओं ने उसके राज्य पर कब्ज़ा कर लिया, उस समय हिरण्यकशिपु की पत्नी जिसका नाम गयाधु था वह गर्भवती थी, जिसे ब्रह्मर्षि नारद जी अपने आश्रम में ले आये, जहाँ वे प्रतिदिन हिरण्यकशिपु की पत्नी गयाधु को भगवान विष्णु जी की महिमा के बारे में बताते थे।

माँ की कोख में रहते हुए ही प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की महिमा के बारे में ब्रह्मर्षि नारद जी के मुख से जो सुना था वह उनके अंदर कुछ इस तरह से घर कर गया कि वे बाल्यावस्था में पहुँचते-पहुँचते पूर्ण रूप से भगवान विष्णु के भक्त बन गए, और ऐसे भक्त बने कि उसकी प्राणों की रक्षा करना भगवान विष्णु का परम कर्त्तव्य बन गया, और इसी कारण से ही भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था।

जब दैत्यराज हिरण्यकशिपु अपनी तपस्या से वापिस आये तब उन्होंने देवताओं पर आक्रमण करके अपना राज्य वापिस लिया, तत्पश्चात वे अपनी पत्नी और पुत्र को वापिस प्राप्त कर पाए, लेकिन तब तक उनका पुत्र प्रह्लाद उनकी दैत्य प्रवृत्ति की मानसिकता से परे भगवान विष्णु के मार्ग को अपना चुका था जो कि उसके पिता हिरण्यकशिपु को तनिक भी नहीं भाता था और इसी कारण से वे प्रह्लाद के ऊपर बहुत क्रोधित भी रहते थे।

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हिरण्यकशिपु का वध कैसे हुआ ?

Image Source : Shri Gauranga Ashram
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हिरण्यकशिपु ने कड़ी तपस्या कर ब्रह्मा जी से एक वरदान प्राप्त कर लिया था, जिसके कारण उसे…..

     ना धरती पर मारा जा सकता था ना आकाश में,
  • ना स्वर्ग में मारा जा सकता था ना पाताल में,
    
    ना घर के अंदर मारा जासकता था ना घर के बाहर, 
    
    ना अस्त्र से मारा जा सकता था ना शस्त्र से, 
    
    ना दिन में मारा जा सकता था ना रात में,
    
    ना किसी मानव के द्वारा मारा जा सकता था ना किसी पशु के द्वारा,
    
    ना किसी देवता के द्वारा मारा जा सकता था ना किसी राक्षस के द्वारा,

इस वरदान के होने से हिरण्यकशिपु अपने आप को अमर और भगवान स्वरुप मानने लगा था, अपने बाहुबल की शक्तियों के भय से वह लोगों से अपनी पूजा करवाता था, अपने पुत्र प्रह्लाद को भी वह इसी कारणवश प्रताड़ित किया करता था, क्योंकि भक्त प्रह्लाद अपने पिता की पूजा न करके भगवान विष्णु की पूजा किया करते थे, जो कि  हिरण्यकशिपु के क्रोध में घी डालने का काम करता था।

दैत्यराज हिरण्यकशिपु जब प्रह्लाद की विष्णु भक्ति को नहीं रोक पाए तो उसे जान से मार डालने की योजना बनाते हैं, और जब कई योजनायें सफल नहीं हो पाई तो आखिरी योजना के समय सही समय पर भगवान विष्णु स्वयं ही नरसिंह अवतार लेते हैं जिसमें वे आधा मानव और आधा सिंह अथवा शेर के रूप में खम्भा फाड़कर निकलते हैं और अपने जंघे पर उसे रखकर अपने नाखूनों से उसका वध कर देते हैं।

दोस्तों, आशा करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके ज्ञान के भंडार को पहले से और बेहतर बनायेगा साथ ही साथ आपको बुद्धजीवियों की श्रेणी में लेकर जायेगा, तो आज के लिए सिर्फ इतना ही, अगले आर्टिकल में हम फिर मिलेंगे, किसी नए टॉपिक के साथ, तब तक के लिए, जय हिन्द – जय भारत

लेखक परिचय

इस वेबसाइट के संस्थापक अमित दुबे हैं, जो दिल्ली में रहते हैं, एक Youtuber & Blogger हैं, किताबें पढ़ने और जानकारियों को अर्जित करके लोगों के साथ शेयर करने के शौक के कारण सोशल मीडिया के क्षेत्र में आये हैं और एक वेबसाइट तथा दो Youtube चैनल के माध्यम से लोगों को Motivate करने तथा ज्ञान का प्रसार करने का काम कर रहे हैं।

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